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मां दुनिया की सबसे अनमोल धरोहर है. मां जहां भी होती है खुशियों से हमारी झोली भर ही देती है. जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा हिन्दी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था. हिन्दी सिनेमा में भी ऐसी कई अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है. “मेरे पास पास मां है” जैसे डायलॉग ऐसे ही हिन्दी सिनेमा के सबसे हिट डायलॉग नहीं बने हैं. हिन्दी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो सबसे पहला नाम निरुपा रॉय का आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को हिन्दी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया.
आज निरुपा रॉय तो हमारे पास नहीं हैं लेकिन उनकी यादें और फिल्में आज भी फिल्मों के रूप में जिंदा हैं. आज उनकी जयंती है तो चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ विशेष बातें.
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ऐसे आईं थी फिल्मी दुनिया में
निरुपा रॉय का जन्म 4 जनवरी, 1931 को गुजरात के बलसाड में एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम कोकिला बेन था. निरुपा रॉय ने चौथी तक शिक्षा प्राप्त की. वह एक बेहद निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से थीं. 15 साल की उम्र में ही निरुपा रॉय की शादी कमल राय से हो गई जो एक सरकारी कर्मचारी थे.
फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई. दरअसल गुजराती अखबार के एक विज्ञापन की वजह से उन्हें फिल्मों में आने का मौका मिला. विज्ञापन अभिनेत्रियों की खोज के लिए था. उन्होंने विज्ञापन का जवाब दिया और गुजराती फिल्म “रनकदेवी” के लिए उन्हें चुन लिया गया. यह फिल्म साल 1946 में रिलीज हुई. इसी साल उन्होंने हिन्दी फिल्म “अमर राज” भी की. 1953 में उनकी हिट फिल्म “दो बीघा जमीन” आई. इस फिल्म ने उन्हें हिन्दी सिनेमा की हिट हिरोइन के रूप में पहचान दी.
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हालांकि 1940 और 1950 के दशक में उन्होंने कई धार्मिक फिल्में कीं जिसकी वजह से लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे. फिल्मी पर्दे पर देवी मां का किरदार निभाने के कारण असल जिंदगी में भी उन्हें पर्दे के किरदार से जोड़ कर देखते थे. इसके बाद निरुपा रॉय अधिकतर अभिनेताओं की मां के रोल में नजर आने लगीं और यहीं से उनकी एक विशेष छवि बनी.
निरुपा राय ने भी मां की भूमिका को निभाकर एक अलग अध्याय रचा. वे अमिताभ बच्चन के साथ अधिक फिल्में करने की वजह से उनकी मां के रूप में आज भी याद की जाती हैं. “दीवार” में उनकी भूमिका वाकई गजब थी. मां बेटे की यह जोड़ी इसके बाद जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया. रोटी, अनजाना, खून पसीना, सुहाग, इंकलाब, मुकद्दर का सिकंदर, मर्द आदि में उनकी भूमिका दमदार थी. बॉलीवुड में फिल्मी मां का किरदार निभाती निरुपा को असल जिंदगी में भी सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने मां का दर्जा दे रखा था. वे हर सुख-दुख में अमिताभ निरुपा रॉय का साथ देते नजर आए. निरुपा रॉय को आज भी हिन्दी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है.
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निरुपा रॉय को मिले पुरस्कार
निरुपा रॉय को तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया. सबसे पहले उन्हें 1956 की फिल्म “मुनीम जी” के लिए यह पुरस्कार दिया गया जिसमें निरुपा रॉय देवानंद की मां की भूमिका में थीं. इसके बाद उन्हें साल 1962 की फिल्म “छाया” के लिए यह पुरस्कार दिया गया था. इसके बाद उन्हें फिल्म “शहनाई” के लिए साल 1965 में पुरस्कृत किया गया था.
हिन्दी सिनेमा में मां के किरदार को जीवंत करने वाली इस महान अभिनेत्री की 13 अक्टूबर, 2004 को मौत हो गई. उन्हें आज भी बॉलिवुड की सबसे सर्वश्रेष्ठ मां माना जाता है.
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