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जब-जब मनुष्य ने प्रकृति की बनाई हुई चीजों को चुनौती दी है तब-तब प्रकृति ने मनुष्य को भीषण और भयावह आपदा के रूप में जवाब दिया है. पिछले साल उत्तराखंड में भीषण बारिश के कारण आई त्रासदी से सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे. ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने प्रकृति के ऐसे प्रचंड रूप को कभी देखा होगा.
आज एक साल बीत जाने के बाद भी स्थानीय सरकार सबक लेने को तैयार नहीं है. चार धाम की यात्रा शुरू हो चुकी है लेकिन राज्य सरकार पूरी तरह से सुस्त पड़ी हुई है. आज भी प्रशासन का श्रद्धालुओं के पंजीकरण को लेकर ढीला रवैया है. पिछले साल आई तबाही में जिस चीज का सबसे ज्यादा योगदान रहा उसमें तीर्थ स्थलों पर बेतहाशा निर्माण कार्य प्रमुख था.
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लगातार चेतावनी के बाद आज भी तीर्थ स्थलों पर निर्माण कार्य चल रहे हैं. उत्तराखंड में आई तबाही का सबसे ज्यादा असर केरदारनाथ पर पड़ा. तबाही से पहले केदारनाथ में चप्पे-चप्पे पर भवन बन गए थे. यहां तक कि पुरी के दोनों ओर बह रही मंदाकिनी नदी के पाट को भी नहीं छोड़ा गया था. केदारनाथ में किसी भी निर्माण को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम-कायदे बने हुए हैं, लेकिन लगता है वहां बनने वाले अवैध भवनों में कहीं न कहीं प्रशासन और सरकार की मिली भगत है. पिछली घटना के बाद अगर अभी भी स्थानीय और केंद्र सरकार ने कड़े कदम नहीं उठाए तो परिणाम और भी भयानक हो सकता है.
नीचे केदारनाथ की कुछ तस्वीरें दिखाई गई हैं जो 1882 की है, तब मंदिर के आसपास केवल एक दो झोपड़ी हुआ करती थी :
केदारनाथ मंदिर 1882
केदारनाथ मंदिर का दक्षिण भाग
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केदारनाथ मंदिर और पहाड़
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