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जर्मन पत्रिका स्टर्न के संपादक पीटर कॉख को यह यकीन था कि जो डायरी उनके हाथ लगी है वह हिटलर ने दूसरे विश्वयुद्ध के समय लिखी थी. उस डायरी की लिखाई को हिटलर की ही लिखाई मानकर प्रचारित किया गया. पीटर कॉख का यह भी कहना था कि हैंडराइटिंग विशेषज्ञों को भी यह डायरी दिखाई गई है और उन्हें भी इस बात में कोई शक नहीं है कि ये डायरी खुद हिटलर ने अपने हाथों से लिखी है.
लेकिन वर्ष 1983 में हुआ यह सबसे बड़ा खुलासा पत्रकारिता के क्षेत्र का सबसे बड़ा धोखा बन गया. कुछ लोगों का कॉख की बातों पर यकीन नहीं था इसीलिए उन्होंने अपने स्तर पर जांच पड़ताल जारी रखी. संडे टाइम्स के पूर्व खोजी पत्रकार फिलीप नाइटले ने इस समाचार पत्र में 20 वर्ष तक काम किया. उनका कहना था कि संडे टाइम्स के संपादक फ्रैंक चाइल्स ने यह स्पष्ट कहा था कि टाइम्स के मालिक रूपर्ट मर्डोक ने हिटलर की डायरी को खरीद लिया है ताकि अखबार में सिलसिलेवार छापा जा सके. लेकिन उस डायरी का स्टर्न के संपादक के पास होना अपने आप में हैरानी भरा था.
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ऐसे में कॉख की इस डायरी की प्रमाणिकता पर सवाल फिलिप ने सवाल उठाने शुरू कर दिए. 62छोटे हस्तलिखित खंडों वाली यह डायरी अप्रैल 1983 आते-आते बेहद विवादित हो गई.
कॉख का कहना था कि यह डायरी उस जहाज में से हासिल की गई है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में हिटलर का निजी सामान लेकर जाते हुए ईस्ट जर्मनी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. लेकिन द टाइम्स के संपादक चार्ल्स डगलस ह्यूम्स को विश्वास दिलाने के लिए हिटलर की अन्य निजी चीजों को भी पेश किया गया.
कॉख का कहना था कि उस जहाज में वहां सिर्फ हिटलर की हैंडराइटिंग में 60 डायरियां ही नहीं थीं, उनके साथ उनकी हाथ से बनाई पेंटिंग्स, चित्र, पार्टी कार्ड भी थे.
टाइम्स समाचार पत्र में इस डायरी के खंड उस साल सोमवार से छपने वाले थे, ऐसे में संडे टाइम्स के संपादक फ्रैंक चाइल्स ने फिलिप को विश्वास दिलाया कि उनके पास जांच करने के लिए अगले रविवार तक का समय है. लेकिन मर्डोक ने अपना निर्णय बदल लिया और उन्होंने इसे सिलसिलेवार छापने के बजाय संडे टाइम्स में छापने का मन बनाया.
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जब संडे टाइम्स का प्रकाशन शुरू हो गया तब संपादक फ्रैंक चाइल्स ने सबूत जुटाने और डायरी की असलियत जानने के लिए नाजी इतिहासकार ह्यू-ट्रेरेरोपा को फोन किया. इस फोन के बाद सब कुछ बदल गया. संडे टाइम्स के फ्रंट पेज वर्ल्ड एक्सक्लूसिव हिटलर डायरी वाले लेख की छपाई की जा रही थी. संपादक रूपर्ट मर्डोक ने छपाई रुकवाई. फिलीप चाहते थे कि वर्ल्ड एक्सक्लूसिव हिटलर डायरी के बजाय वर्ल्ड एक्सक्लूसिव हिटलर डायरी? का लेख छपे लेकिन इतना सब होने के बाद भी संडे टाइम्स वैसे ही छपा जैसे पहले तय किया गया था.
इस डायरी के समाचार पत्र में छपते ही विवाद हो गया. हिटलर की तथाकथित डायरी की तीसरी किश्त छापने के लिए स्टर्न पत्रिका की ओर से हैम्बर्ग में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गई थी. इस कांफ्रेंस में पहले तो एक विद्वान ने डायरी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और फिर खुद ह्यू ट्रेरेरोपा ने कहा कि वह अपनी राय पर पुनर्विचार कर रहे हैं कि यह डायरी हिटलर की है या नहीं.
तभी एक और विशेषज्ञ ने कांफ्रेंस में नकली डायरी दिखाई और कहा कि यह भी उसी व्यक्ति से हासिल की गई है जिससे हिटलर की डायरी मिली. इस सनसनीखेज खबर के लिए स्टर्न ने 90 लाख मार्क का भुगतान किया था और मर्डोक ने उसे दस लाख डॉलर में खरीदा था. वर्ष 1983 में यह बहुत बड़ी रकम थी.
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