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ओ माँ सरस्वती ! मेरे मस्तिष्क से अंधेरे रूपी अज्ञान को हटा दो तथा मुझे शाश्वत ज्ञान का आशीर्वाद दो!
बसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण महक उठता है. मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं. चारों तरफ वादियों में एक अलग सी चमक देखने को मिलती है. हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है. हिंदू परंपरा के लिहाज से यह मौसम ज्ञान-प्राप्ति और मार्गदर्शन के लिए उचित समय होता है. प्रकृति और विद्या के प्रति अपने समर्पण को दर्शाने का यह सबसे बेहतरीन मौका माना जाता है.
भारत के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है. बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है – शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी या फ़रवरी के महीने में मनाया जाता है. बसंत पंचमी के दिन पूरे भारत में मां सरस्वती की पूजा करने की प्रथा है.
देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से सबसे अहम अवतार सरस्वती मां का माना जाता है. देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं. इस अंधकारमय जीवन से इंसान को सही राह पर ले जाने का सारा बीड़ा वीणा वादिनी सरस्वती मां के कंधों पर ही है. ज्ञान ही इंसान को उसका लक्ष्य प्राप्त करा सकता है. एक अज्ञानी अपने जीवन में ना तो भौतिक और ना ही अलौकिक लक्ष्यों और मंजिलों की प्राप्ति कर सकता है. यह ज्ञान सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं व्यवाहारिक ज्ञान भी होता है. देवी सरस्वती के पाठ से ही इंसान को वह एकाग्रता और स्मरण शक्ति मिलती है जो उसे जीवन में सफल बनाती है.
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यह ज्ञान का त्यौहार है, फलतः इस दिन प्रायः शिक्षण संस्थानों व विद्यालयों में अवकाश होता है. विद्यार्थी पूजा स्थान को सजाने-संवारने का प्रबन्ध करते हैं. शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है लेकिन आज सार्वजनिक पूजा-पंडालों में तब्दील हो चुकी है. विद्या के साथ-साथ संगीत के लिहाज से भी आज का दिन महत्वपूर्ण होता है. इस दिन संगीत प्रेमी अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं और मां सरस्वती से जीवन में सफलता के लिए आशीर्वाद मांगते हैं.
सरस्वती व्रत और पूजन विधि
मां भगवती सरस्वती की पूजा के लिये वसंत पंचमी के एक दिन पूर्व चतुर्थी के दिन उपासक को संयम नियम का पालन करना चाहिए तथा पंचमी को प्रात: काल उठकर एक स्थान पर साफ सफाई कर घट स्थापना कर उसमें वाग्देवी का आह्वान करें. मां सरस्वती के चित्र एवं प्रतिमा का विधि-विधान से पूजन करें. देवी सरस्वती की आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री अधिकांश श्वेत वर्ण होती है, जिसमें दही, मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, श्वेत पुष्प, गन्ना एवं गन्ने का रस, पका हुआ गुण, मधु, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र,श्वेत आभूषण, मावा का मिष्टान, अदरक, मूली, शक्कर, घृत, नारियल, नारियल का जल, श्रीफल, ऋतु अनुसार फल आदि सामग्री का पूजन में प्रयोग होता है. वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनकर मां सरस्वती का पूजन किया जाए तो अधिक फलदायी होता है. पूजा स्थल पर गेहूं की बाली, पीला फूल, आम के पत्ते आदि का अर्पण कर मां सरस्वती से ज्ञान, बुद्धि, वाणी को प्राप्त करने की प्रार्थना करनी चाहिए.
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माघ शुक्ल पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्टी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए.
मां सरस्वती मंत्र
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा।
सरस्वती मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
सरस्वती मंत्र
घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामंत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्॥
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