Menu
blogid : 3738 postid : 694986

लाला लाजपत राय: हर चोट बनेगी ताबूत की कील

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

1947 में हमें शायद ही अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति मिलती यदि स्वतंत्रता आंदोलन के समय 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो हिस्सों में ना बंटी होती. एक है नरम दल और दूसरा गरम दल. एक तरफ जहां नरम दल शांतिपूर्वक तरीके से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए संवैधानिक साधनों को अपनाते थे वहीं दूसरी तरफ गरम दल के नेता प्राणों की परवाह किए बैगर अंग्रेजी शासन को चुनौती देते थे. ऐसे ही एक गरम दल के नेता थे पंजाब केसरी लाला लाजपतराय.


28 जनवरी, 1865 को लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था. उनके पिता लाला राधाकृष्ण अग्रवाल पेशे से अध्यापक और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे. प्रारंभ से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे. उन्होंने हिसार और लाहौर में वकालत शुरू की. लाला लाजपतराय को शेर-ए-पंजाब का सम्मानित संबोधन देकर लोग उन्हे गरम दल का नेता मानते थे. लाला लाजपतराय स्वावलंबन से स्वराज्य लाना चाहते थे.


lala lajpat rai 11905 में बंगाल का विभाजन किया गया था तो लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल (लाल-बाल-पाल) जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की. अंग्रेज उनकी बढ़ती लोकप्रियता से डरते थे. अंग्रेज सरकार जानती थी कि लाल बाल (बाल गंगाधर तिलक) और पाल (विपिन चन्द्र पाल) इतने प्रभावशाली व्यक्ति हैं कि जनता उनका अनुसरण करती है.


Read: कितनी अराजक है ‘आप’ की नीति ?


साल 1920 में जब वह भारत आए तब तक उनकी लोकप्रियता आसमान पर जा चुकी थी. इसी साल कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए. लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे पंजाब का शेर और पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे. लालाजी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया.


साइमन कमीशन

30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया. उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे. पूरे भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था क्यूंकि सभी चाहते थे कि साइमन कमीशन में भारतीय प्रतिनिधि भी होना चाहिए. इस दौरान पंजाब में इस कमीशन का विरोध करने वाले दल की अगुवाई लाला लाजपत राय ने की. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बाल-वृद्ध, नर-नारी हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे. फिरंगियों की निगाह में यह देशभक्तों का गुनाह था.

साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया. इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठी चार्ज किया. अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद उन्होंने कहा कि उनके शरीर पर लगी एक-एक लाठी अंग्रेजी साम्राज्य के लिए कफन साबित होगी. लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगाई. अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा, ‘मेरे’ शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’ और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली.


Read: वनडे टीम को ‘पुजारा’ की जरूरत


आर्य समाज में योगदान

लाजपत राय के जीवन को आर्यसमाज के सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों ने अत्यधिक प्रभावित किया. किशोर लाजपत की आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं उनके कार्यों के प्रति अनन्य निष्ठा थी. पंजाब के ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज’ की स्थापना के लिए भी उन्होंने अथक प्रयास किये थे. स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर लाला लाजपत राय ने आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया. आर्यसमाज आंदोलन की पंजाब में उस समय लहर थी.  स्वामी दयानंद जी के देहावसान के बाद उन्होंने आर्यसमाज के कार्यों को पूरा करने के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया.

लाला लाजपतराय का व्यक्तित्व एक क्रांतिकारी नेता की रही है. अपने तेजस्वी भाषणों से भारत की जनता में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए जोश फूंकने वाले लाला लाजपतराय की यही शख्शियत अंग्रेजी हुकूमत के लिए हमेशा सिरदर्द बनी रही.


Read more:

लाला लाजपत राय के लिए 30 अक्टूबर एक अहम दिन था

कभी बोलते समय गांधी जी की टांगें कांप गई थीं

क्या आज फिर भगत सिंह की जरूरत है?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh