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पर्वों के देश यानि भारत की हर बात निराली है. भारत की संस्कृति की तरह यहां के पर्व भी बेहद अनोखे और निराले हैं. साल की शुरुआत ही पर्वों के साथ होती है और इनमें से सबसे अहम पर्व है मकर संक्रांति.
मकर संक्रांति श्रद्धा, आस्था और विश्वास का त्यौहार है. पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस पर्व को मनाया जाता है. यह त्यौहार जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन पड़ता है. मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है. इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं.
इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और फसल से है. इस दिन किसान अपनी लहलहाती अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर और अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाए रखने का आशीर्वाद मांगते हैं. इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है. इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है.
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संक्रांति के दिन पवित्र गंगा स्नान
मकर संक्रांति के दिन पवित्र गंगा में नहाना व सूर्य की उपासना अत्यन्त पवित्र कर्म माने जाता हैं. संक्रांति के पावन अवसर पर हज़ारों लोग इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम और वाराणसी में गंगाघाट के अलावा हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करते हैं. इलाहाबाद में हर वर्ष हजारों लोग गंगा जमुना और सरस्वती के संगम पर नहाने आते हैं.
पश्चिम बंगाल के गंगासागर पर भी हजारों लोग इस अवसर पर नहाने पहुंचते हैं. इनमें साधु संन्यासियों की भी बड़ी संख्या होती है. गंगासागर, अर्थात वह स्थल जहां आकर पतित पावनी गंगा सागर में मिल जाती हैं, जो सागरतीर्थ (सागरद्वीप) के नाम से विख्यात है.
गर्म पानी की कुंड में स्नान
मकर संक्रांति के पर्व के अवसर पर लोग शिमला से पचास किलोमीटर की दूरी पर सतलुज नदी के किनारे बने प्राचीन एवं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल तत्तापानी में अंतिम पवित्र स्नान करने जाते हैं. यहां हर साल मेले का आयोजन किया जाता है’ तत्तापानी यानी गर्म पानी का कुंड जहां लोग मकर संक्रांति के अवसर पर लोग डुबकी लगाते हैं.
गुड़ से बनी हुई चीजें खाने की परम्परा
मकर संक्रांति की पहचान एक वैदिक उत्सव के रूप में की जाती है. मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से बनी हुई चीजें खाने की परम्परा रही है. इस दिन तिल से बनी हुई वस्तुएं जैसे तिलकूट, तिल का लड्डू, गजक, रेवड़ी का प्रसाद प्रसाद बांटा जाता है. इसके अलावा देश के कई इलाको में इस अवसर पर लोग पतंग भी उड़ाते हैं
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पोंगल के नाम से मकर संक्रांति
मकर संक्रांति को देश में कई नामों से जाना जाता है. जहां उत्तर भारत में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं वहीं पोंगल के नाम से मकर संक्रांति का पर्व दक्षिण भारत और श्रीलंका में भी मनाया जाता है. पोंगल का महत्व दक्षिण भारतीयों के लिए उसी तरह है जैसे उत्तर भारत में लोहड़ी और मकर संक्रांति. जिस तरह लोहड़ी और मकर संक्रांति फसलों से जुड़े पर्व है उसी तरह पोंगल भी विशेष रूप से किसानों और फसलों का का पर्व है. जब किसान अपने खेतों में लहलहाती फसलों को देखता है तो वह भगवान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाता है. पोंगल के त्यौहार में मुख्य रूप से बैल की पूजा की जाती है क्योंकि बैल के माध्यम से किसान अपनी जमीन जोतता है और साथ ही भगवान को नई फसल का भोग लगाया जाता है. पोंगल तीन दिन तक मनाया जाता है. पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे तीन पशु धन की.
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