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भारत में साल का पहला और प्रसिद्ध पर्व लोहड़ी समस्त उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाने वाला यह त्यौहार मूलत: पंजाब का है लेकिन आज यह पंजाब से बाहर निकलकर हिंदुस्तान का पर्व बन चुका है.
प्रेम व सौहार्द का संदेश देने वाला यह त्यौहार पंजाबी लोगों की जिंदादिली का आइना है. इसके पीछे जो लोककथा है उसके अनुसार पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित दुल्ला भट्टी ने मुगल शासक के समय गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेची जा रही लड़कियों को न केवल मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लड़कों से करवाई. इसके अलावा लोहड़ी को दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद से जोड़ा जाता है.
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पंजाब में गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है. लोहडी पर्व तक यह पता चल जाता है कि फसल कैसी होगी, इसलिए लोहड़ी के समय लोग उत्साह से भरे रहते हैं.
आज के दिन अग्नि पूजन का विशेष महत्व है. सूर्य ढ़लते ही खेतों में बड़े–बड़े अलाव जलाए जाते हैं. घरों के सामने भी इसी प्रकार का दृश्य होता है. लोग ऊंची उठती अग्नि शिखाओं के चारों ओर एकत्रित होकर, अलाव की परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि को पके हुए चावल, मक्का, तिल, मूंगफली, फूल, मखाने आदि डालकर इस पर्व को अत्यधिक जोश व उल्लास के साथ मनाते हुए नजर आते हैं.
इस दौरान लोकगीत और संगीत का भी माहौल होता है. यह संगीत एक प्रकार से अग्नि को समर्पित प्रार्थना है. जिसमें अग्नि भगवान से प्रचुरता व समृद्धि की कामना की जाती है. परिक्रमा करने के बाद लोग एक दूसरे से मिलते हैं, जिसके बाद बधाई तथा शुभकामना का सिलसिला शुरू हो जाता है. लोग एक दूसरे को दाने तथा अन्य चबाने वाले भोज्य पदार्थ बांटते हैं जिसमें तिल, मूंगफली, फूल आदि शामिल है.
लोहड़ी का निम्नलिखित गीत काफी मशहूर है जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है:
सुंदर, मुंदरिये हो,
तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले धी (लड़की) व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो.
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