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देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आम जनता के बीच इस कदर लोकप्रिय थीं जिसकी कोई सीमा ना थी. इंदिरा गांधी ही वो नेता थीं जिसने असल मायनों में “गरीबी हटाओ” के नारे को सार्थक किया था. लेकिन कहते हैं ना कि अगर आपके पाले में कुछ गलत लोग हों तो उसका परिणाम आपको ही भुगतना पड़ता है.
इंदिरागांधी का जीवन
इंदिरा का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ था. पिता जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वालों में शामिल थे. वही दौर रहा, जब 1919 में उनका परिवार बापू के सानिध्य में आया और इंदिरा ने पिता नेहरू से राजनीति का ककहरा सीखा. मात्र ग्यारह साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बच्चों की वानर सेना बनाई. 1938 में वह औपचारिक तौर पर इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुईं और 1947 से 1964 तक अपने प्रधानमंत्री पिता नेहरू के साथ उन्होंने काम करना शुरू कर दिया. ऐसा भी कहा जाता था कि वह उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू की निजी सचिव की तरह काम करती थीं, हालाकि इसका कोई आधिकारिक ब्यौरा नहीं मिलता.
पिता के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी का ग्राफ अचानक काफी ऊपर पहुंचा और लोग उनमें पार्टी एवं देश का नेता देखने लगे. वह सबसे पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं. शास्त्री जी के निधन के बाद 1966 में वह देश के सबसे शक्तिशाली पद [प्रधानमंत्री] पर आसीन हुईं.
एक समय ‘गूंगी गुडिया’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी तत्कालीन राजघरानों के प्रिवी पर्स को समाप्त कराने को लेकर उठे तमाम विवाद के बावजूद तत्संबंधी प्रस्ताव को पारित कराने में सफलता हासिल करने, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने जैसा साहसिक फैसला लेने और पृथक बांग्लादेश के गठन और उसके साथ मैत्री और सहयोग संधि करने में सफल होने के बाद बहुत तेजी से भारतीय राजनीति के आकाश पर छा गईं.
इन्दिरा की सबसे बड़ी गलती ‘’आपातकाल’’
इन्दिरा गांधी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप साबित हो चुके थे इसीलिए 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया. उन्हें कुर्सी छोड़ने और छह साल तक चुनाव ना लड़ने का निर्देश मिला. लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी ताकतवर छवि और गर्म मिजाज दिमाग से आपातकाल का रास्ता निकाला.
25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने संविधान की धारा- 352 के प्रावधानानुसार आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी. यह एक ऐसा समय था जब हर तरफ सिर्फ इंदिरा गांधी ही नजर आ रही थीं. वर्ष 1975 में आपातकाल लागू करने का फैसला करने से पहले भारतीय राजनीति एक ध्रुवीय सी हो गई थी जिसमें चारों तरफ इंदिरा ही इंदिरा नजर आती थीं. इंदिरा की ऐतिहासिक कामयाबियों के चलते उस समय देश में ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा जोर शोर से गूंजने लगा.
एक फैसले ने दी मौत
इंदिरा गांधी के लिए 1980 का दशक खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया. 1984 में सिख चरमपंथ की धीरे धीरे सुलगती आग फैलती गई और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में चरमपंथियों का जमावड़ा होने लगा. जून 1984 में इंदिरा ने सेना को मंदिर परिसर में घुसने और ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने का आदेश दिया. स्वर्ण मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति के बावजूद इंदिरा गांधी ने आतंकवादियों का सफाया करने के लिए सेना को धर्मस्थल में प्रवेश करने का आदेश दिया. इस ऑपरेशन में कई निर्दोष नागरिक भी मारे गए.
‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को लेकर उन्हें कई तरह की राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. राजनीति की नब्ज को समझने वाली इंदिरा मौत की आहट को तनिक भी भाप नहीं सकीं और 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उन्हें गोली मार दी. दिल्ली के एम्स अस्पताल में ले जाते रास्ते में ही इन्दिरा गांधी का निधन हो गया.
इंदिरा गांधी के निधन के बाद भारत में शोक की लहर उठ गई और वो ऐसी लहर थी जो आज भी 19 नवंबर को इंदिरा गांधी को याद करने पर हर भारतवासी के दिल में उठ जाती है.
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