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ब्रिंदा करात: वामपंथी विचारधारा ने इनकी नौकरी छुड़वा दी (Brinda Karat Profile))

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भारत में तरह-तरह के वामपंथी विचारधारा के लोग आपको मिल जाएंगे जिन्होंने बढ़ती अराजकता के खिलाफ वामपंथी आंदोलन को अपनाया. इनमे से कुछ ने अपने विद्यार्थी काल के दौरान नक्सलवाद आंदोलन को अपनाया तो कुछ ने मार्क्सवादी पार्टी के दामन को थाम लिया. उन्हीं में से एक हैं ब्रिंदा करात (Brinda Karat).


vrinda karat16 वर्ष की आयु में ब्रिंदा करात ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से डिप्लोमा लेने के बाद देहरादून विश्वविद्यालय से इतिहास विषय के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की. वह कॉलेज के दौरान ही मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हो चुकी थी. वह इससे संबंधित कई किताबे भी पढ़ चुकी थी. इन किताबों ने उन्हें काफी झकझोरा. बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि जब ब्रिंदा लंदन में नौकरी कर रही थी उसी दौरान उनके मन में कुछ करने की इच्छा जागी. इसके लिए उन्होंने नौकरी को छोड़ दिया और कुछ करने के लिए भारत का रुख किया. वह मार्क्सवादी पार्टी से जुड़ गईं. उस समय उनकी उम्र महज 21 साल थी.


मार्क्सवादी पार्टी से जुड़ने के लिए ब्रिंदा करात (Brinda Karat)को जिस चीज ने सबसे ज्यादा प्रेरित किया वह है धनी तथ निर्धन के बीच बढ़ती असमानता. मार्क्सवादी विचारों से उनकी सारी समस्या का हल मिलता था इसलिए उन्होंने लंदन में नौकरी छोड़कर कलकत्ता आई और पार्टी से जुड़ गईं. पार्टी ने उन्हें सलाह दिया कि वह विश्वविद्यालय में जाए और व्यवहारिक राजनीति को अच्छी तरह से समझे. उन्होंने पार्टी की बात को स्वीकारा और कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए किया.


उस दौरान ब्रिंदा करात (Brinda Karat) चाहती थी कि वह पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में काम करें लेकिन पार्टी ने उन्हें विद्यार्थियों के बीच जाने को कहा. शायद वह चाहते थे कि ब्रिंदा देश की राजनीति को उसकी जड़ से समझे.


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व्यवहारिक राजनीति का ज्ञान लेने के उद्देश्य से ब्रिंदा करात (Brinda Karat) ने शुरुआत में विश्वविद्यालय के छत्रों की परेशानियों और उनके हितों के लिए काम करना शुरू किया. बाद में वह बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के लिए काम करने लगीं. वर्ष 1975 में दिल्ली पलायन करने के बाद वह उत्तरी दिल्ली के कपड़ा मिल श्रमिकों के साथ जुड़ व्यापार संघ आयोजक के रूप में काम करने लगीं. इसी दौरान वह भारत में एक सक्रिय कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान बनाने लगीं.


वर्ष 1980 में बलात्कार से संबंधित लचीले भारतीय कानूनों का विरोध और उनमें सुधार की मांग करने पर उन्हें और अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई. ब्रिंदा करात ने कम्यूनिस्ट पार्टी में महिलाओं की भागीदारी को अहमियत ना मिलने के कारण इसकी केन्द्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया. वर्ष 2005 में वे राज्यसभा सदस्य बनने के साथ CPI(M) की पहली महिला सदस्य भी बनीं. वर्तमान में भी वह महिलाओं और पुरुषों को लेकर असमान मानसिकता के विरोध में कार्य कर रही हैं.


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