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लोहिया के समाजवाद को भूल गए लोग

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हर साल 12 अक्टूबर को एक ऐसे शख्सियत को श्रद्धांजलि दी जाती है जिसने अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ-साथ अपने विरोधियों के मध्‍य भी अपार सम्‍मान हासिल किया, लेकिन आज उनके इन्ही विचारों को तिलांजली दी जा रही है. बात हो रही है समाजवाद के सबसे बड़े परिचायक राम मनोहर लोहिया की.


राम मनोहर लोहिया का जीवन

राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था. उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे. उनके पिताजी गाँधीजी के अनुयायी थे. जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे. इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ.


आंदोलन में भागीदारी

8 अगस्‍त 1942 को महात्‍मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया. 1942 के आंदोलन में डा. लोहिया ने संघर्ष के नए शिखरों को छूआ. जयप्रकाश नारायण और डा. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुए और भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्‍व किया. लेकिन अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 1946  में उनकी रिहाई हुई. 1946-47 के वर्ष लोहिया जी की जिंदगी के अत्‍यंत निर्णायक वर्ष रहे. आजादी के समय उनके और पं. जवाहर लाल नेहरु में कई मतभेद पैदा हो गए थे जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए.


भाषा को लेकर लड़ाई

भारत छोडो़ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले लोहिया ने आजादी के बाद अंग्रेजी की वरीयता देख 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम छेड़ दिया. वैसे भारतीय संविधान जब लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा लेकिन लोहिया ने समय सीमा पूरी होने से पहले आंदोलन छेड़ दिया था. आंदोलन को बढ़ता देख केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया. इसके अनुसार 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि भाषा को लेकर संघर्ष समाप्त हो गया था. 1965 के बाद भी लगातार भाषा को लेकर विवाद सामने आते रहे.


लोहिया के समाजवाद को भूल गए लोग

वैसे जिस समाजवाद का सपना लोहिया ने देखा था उसे उनके लोग कहीं न कही भूलते जा रहे हैं. राम मनोहर लोहिया ने हमेशा जाति व्यवस्था को तोड़ने की बात की लेकिन आज राजनीति पार्टियां इसे फलदाई वस्तु के रूप में इस्तेमाल कर रही है. उनकी विचारधारा का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी की बुनियाद ही इसपर टिकी हुई है. वह जाति और धर्म से हटकर बात भी नहीं करते.

सपा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार को चुनते समय केवल एक ही योग्यता पर ध्यान देती है कि वह उम्मीदवार किस धर्म और जाति का है. जब भी उन्हें लगता है कि उनकी पार्टी हाशिए पर जा रही है तो वह इसी फासे को फेंकती हैं.

30 सितम्बर, 1967 को लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल, अब जिसे लोहिया अस्पताल कहा जाता है, में पौरूष ग्रंथि के आपरेशन के लिए भर्ती किया गया जहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया.

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