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मुंशी प्रेमचंद: जीवंत के करीब है इनका साहित्य लेखन

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75 साल पहले एक युगपुरुष ने अपने उपन्यास के जरिए तब के भारत की रूपरेखा रखी थी उस समय से लेकर आज तक वही स्थिति बरकरार है. साहित्य के अग्रणी लेखकों में से प्रेमचंद (Premchand) के अधिकतर उपन्यासों में मिल मालिक और मजदूरों, जमीदारों और किसानों तथा नवीनता और प्राचीनता का संघर्ष करते हुए दिखाया गया है.


का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. वह एक कुशल लेखक, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे. प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक ग्राम में हुआ था. इनका संबंध एक गरीब कायस्थ परिवार से था. प्रेमचंद ने अपना बचपन असामान्य और नकारात्मक परिस्थितियों में बिताया. जब वह केवल आठवीं कक्षा में ही पढ़ते थे, तभी इनकी माता का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया. बालक प्रेमचंद इस दुर्घटना को सहन करने के लिए बहुत छोटे थे.

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जीवंत के करीब है इनका साहित्य लेखन

की बाकी कहानियों और उपन्यासों में पात्रों की प्रस्तुति किसी को भी प्रभावित किए बगैर नहीं रहती. प्रेमचंद ने अपने साहित्य में सभी पात्रों को बहुत ही जीवंत के करीब रखा है इसलिए यह कोई नहीं कह सकता कि इनमें से सबसे अच्छा पात्र कौन है. प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया. उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं. इसके अलावा प्रेमचंद ने लियो टॉल्सटॉय जैसे प्रसिद्ध रचनाकारों के कृतियों का अनुवाद भी किया जो काफी लोकप्रिय रहा.


किसान और मजदूर के संघर्ष को दिखाया

के गोदान का होरी आज भी किसान की उस स्थिति को दर्शाता है जहां सैकड़ों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. प्रेमचंद का होरी आज भी उन्हीं सवालों को झेल रहा है जिनके लिए वो शोषक ढांचे की बर्बरता को प्रेमचंद के गोदान के समय में झेलता था. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल में किसानों की आत्महत्या यह बताती है कि हालत में अभी भी कोई सुधार नहीं आया. आज भी सरकार किसानों की मांगों को पहले की तरह नजरअंदाज कर रही है.

गोदान में जब होरी का बेटा गोबर अपनी गर्भवती प्रेमिका के साथ गांव में रहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता तो लखनऊ भागकर अंतत: इसी चीनी मिल में काम करने लगता है. गोबर के आचरण में आज हम भारत के उस मजदूर वर्ग को देख सकते हैं जो नौकरी की तलाश में दूसरे क्षेत्र की ओर पलायन करते हैं. यह वह मजदूर हैं जिनका आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषण किया जाता है और जीविका के नाम पर थोड़े पैसे थमा दिए जाते हैं.


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