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International Ozone Day: अब नहीं रुके तो फिर आगे मौका नहीं मिलेगा

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इतिहास और भूगोल के अध्ययन से यह साफ है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए काफी लंबा समय तय करना पड़ा है. लेकिन जो चीज इंसान को कड़ी मेहनत और प्रकृति से फलस्वरूप मिली है उसे आज खुद इंसान ही मिटाने पर लगा हुआ है. यह मानव ही है जो अपने विकास के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, जिसकी वजह से आज ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ओजोन का क्षरण आदि दिखाई दे रहा है.


ozoneआखिर ओजोन(Ozone) है क्या ?

ओजोन(Ozone) एक हल्के नीले रंग की गैस होती है जो आक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3) का यौगिक है. ओजोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है. यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है.


बहुमुखी प्रतिभा ने दिलाई नई ऊंचाई


World Ozone Day

ओजोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं. लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओजोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए. हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओजोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है.


कौन हैं शेरवुड रोलैंड

शेरवुड रोलैंड ने ही सबसे पहले बताया था कि मानव निर्मित रसायनों की वजह से ओजोन की परत को भीषण नुकसान हो रहा है. उन्होंने इसको लेकर 1974 में एक शोध-पत्र लिखा था.

इस शोध पत्र में उन्होंने क्लोरोफ्लोरोकार्बन को ओजोन के लिए नुकसानदेह बताया. इस शोध के बाद रोलैंड की कई वैज्ञानिकों ने आलोचना की थी क्योंकि उस जमाने में विकसित देशों में भारी मात्रा में क्लोरोफ्लोरोकार्बन का बहुत इस्तेमाल होता था. उनकी खोज के कारण ही क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे नुकसानदेह रसायन पर आज प्रतिबंध लग सका. शेरवुड रोलैंड को वर्ष 1995 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार और वर्ष 1989 में जापान पुरस्कार प्रदान किया गया था. पृथ्वी के ओजोन परत के क्षय का सबसे पहले पता लगाने वाले अमरीकी रसायन शास्त्र प्रोफेसर शेरवुड रोलैंड का पिछले साल देहांत हो गया.


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ओजोन परत में नुकसान पहुंचने से खतरे

ओजोन परत बहुत ही महत्वपूर्ण है जो सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों से हमारी रक्षा करती है. यदि ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है तो मनुष्य में त्वचा से जुड़ी तमाम बीमारियां हो सकती हैं.

ओजोन परत के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते क्योंकि इन किरणों के कारण कैंसर, फसलों को नुकसान और समुद्री जीवों को खतरा पैदा हो सकता है और ओजोन परत इन्हीं पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है.

एक अन्य खतरा इसके कारण ध्रुवों के पिघलने का है. अंटार्कटिका में ओजोन परत में एक बड़ा छेद हो गया है. अंटार्कटिका क्षेत्र में बड़े हिमखंड हैं. यदि ये हिमखंड पिघलते हैं तो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ सहित कई खतरे पैदा हो सकते हैं. इसके अलावा गर्मी भी बढ़ेगी जो नुकसानदायी होगी.

ओजोन परत को नुकसान पहुंचने से जैविक विविधता पर भी असर पड़ता है और कई फसलें नष्ट हो सकती हैं. इनका असर सूक्ष्म जीवाणुओं पर होता है. इसके अलावा यह समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती है जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है.

ओजोन पट्टी के नष्ट होने और वायुमंडल में कार्बन मोनो आक्साइड की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है. इससे समुद्री जल का स्तर बढ़ना भी इस तबाही का एक कारक हो सकता है. अंटार्कटिका क्षेत्र में ओजोन परत में एक बड़ा छेद हो गया है. जिससे वहां मौजूद बड़े हिमखंड पिघल रहे हैं. इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ स्थिति उत्पन होती दिख रही है.


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