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Rituparno Ghosh: लैंगिकता से परे एक फिल्मकार की क्या है जिंदगी

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बॉलीवुड में अपनी फिल्म को चलाने के लिए आजकल कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. फिल्म की कहानी भले ही सही न हो लेकिन उसे सौ या दो सौ करोड़ की लिस्ट में शामिल करने के लिए तरह-तरह के प्रमोशन किए जा रहे हैं. वहीं इसी बॉलीवुड में कुछ फिल्में ऐसी बनाई जाती हैं जो कलात्मक दृष्टि से बहुत ही उम्दा होती हैं लेकिन प्रमोशन के न होने की वजह से लोगों की पहुंच से बाहर हो जाती हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी रहे हैं जो अपने फिल्मों के न चलने के बाद भी ऐसी आर्ट फिल्मे बनाना नहीं छोड़ते थे. उन्हीं में से एक निर्देशक थे ऋतुपर्णो घोष (Rituparno Ghosh).


rituparno ghoshऋतुपर्णोघोष की शिक्षा

31 अगस्त, 1963 को कलकत्ता में जन्मे ऋतुपर्णोघोष (Rituparno Ghosh) के पिता भी फिल्मों से जुड़े थे. ऋतुपर्णो घोष (Rituparno Ghosh) ने अपनी स्कूली पढ़ाई साउथ पॉइंट हाई स्कूल (South Point High School) से पूरी की. इसके बाद जाधवपुर यूनिवर्सिटी (Jadavpur University, Kolkata) से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की.


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ऋतुपर्णोघोष का कॅरियर

ऋतुपर्णोघोष (Rituparno Ghosh) ने अपना कॅरियर विज्ञापन के जरिए शुरू किया. 1992 में उन्होंने पहली बार बच्चों पर आधारित एक फिल्म बनाई थी जिसका नाम था हिरेर अंग्ति (Hirer Angti). उनकी दूसरी फिल्म थी उनीसे अप्रैल (Unishe April) मतलब 19 अप्रैल. इस फिल्म के लिए उनको 1995 का सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

बंगाल के इस फिल्म निर्देशक ने दहन, उत्सब ( Utsab), चोखेर बाली (Chokher Bali), असुख (Asukh), बारीवली (Bariwali), अंतरमहल (Antarmahal) और रेनकोट (Raincoat) जैसी शानदार फिल्में भी बनाईं जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिले.


ऋतुपर्णो घोष को 12 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

ऋतुपर्णो घोष को 12 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल हुए जो किसी भी कलाकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है पिछले साल ‘अबोहोमन’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ था. इसके अलावा बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ऋतुपर्णो घोष (Rituparno Ghosh) की फिल्म बारीवली को नेटपैक अवार्ड (NETPAC Award) दिया गया था.


खुद को समलैंगिक मानते थे ऋतुपर्णो घोष

निर्देशक ऋतुपर्णो घोष खुद को समलैंगिक मानते थे और अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर वो काफी सहज भी थे. उनको देखकर भी लगता था कि वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश थे. अपनी लैंगिकता को स्वीकार कर उन्हें एक अलग किस्म का प्रशंसक वर्ग भी मिला, लेकिन उनके करीबी लोगों ने उनसे कुछ दूरी भी बना ली.

एक निर्देशक के तौर पर ऋतुपर्णो घोष (Rituparno Ghosh) की छवि लीक से हटकर और आर्ट फिल्में बनाने के लिए रही है. वह अपनी फिल्मों में संवेदनशील विषयों को उठाते थे. उनकी अधिकतर फिल्में समाज के भीतर से ही उठाई हुई पृष्ठभूमि पर होती थी जो कहीं न कहीं कुछ सवाल जरूर खड़े करती थे. 30 मई को इस महान कलाकार का 49 वर्ष की आयु में निधन हो गया.


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