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राजीव गांधी को देश के ऐसे शख्सियत के तौर पर देखा जाता है जिन्होंने भारत के युवाओं के लिए एक अलग ही सपना देखा था. इसके लिए उन्होंने देश में कंप्यूटर क्रांति की नींव रखी. वह भारतीय राजनीति और कांग्रेस के इतिहास में ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने शायद सबसे पहले किसी सार्वजनिक मंच पर खुद सरकार में होते हुए सरकार में फैले भ्रष्टाचार पर आवाज उठाई. इन तमाम बातों के बावजूद भी राजीव गांधी के ऊपर कुछ ऐसे दाग हैं जिसे आज तक कांग्रेस पार्टी मिटाए फिरती है.
1984 दंगे पर विवादित बयान
बात सन् 1984 की है जब 31 अक्तूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी जिसके बाद देश की राजधानी दिल्ली समेत भारत के कई शहरों में सिखों के खिलाफ दंगे भड़क गए. इस दंगे में 3000 सिख मारे गए. उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक ऐसा बयान दिया जिसको लेकर आज भी कांग्रेस की किरकिरी होती है. उन्होंने कहा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है. इस बयान के बाद से से ही विपक्ष राजीव गांधी पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने दंगे भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
भोपाल गैस कांड
भोपाल कांड (Bhopal disaster 1984) देश के इतिहास पर सबसे बड़ा बदनुमा दाग है जिसकी वजह से आज भी भोपाल की हवा में जहर का अनुभव होता है. इस घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए शपथ पत्र में मरने वालों की संख्या 5295 बताई गई थी. लगभग आठ लाख की आबादी वाले शहर भोपाल को देखते देखते गैस चैंबर में तब्दील करने वाली अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के आला अफसरों के साथ साथ मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों तथा राज्य के बड़े-बड़े नौकरशाहों का हाथ बताया गया. राजीव गांधी पर आरोप है कि उन्होंने आरोपियों को बचाने की कोशिश की.
जानकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस की कैद से यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को ‘दिल्ली’ के दबाव से 8 दिसंबर, 1984 को रिहा किया गया. और यह दिल्ली का दबाव किसी और का नहीं उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का माना जाता है.
बोफोर्स घोटाला
राजीव गांधी के शासन काल में बोफोर्स घोटाला सबसे गंभीर मुद्दा था, बोफोर्स तोपों से जुड़ा था. कहा जाता है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकाई थी. उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया था. पिछ्ले साल 2012 में बोफोर्स तोप सौदा प्रकरण में स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख और मामले की जांच से जुड़े रहे स्टेन लिंडस्ट्रोम ने ताजा खुलासा किया. एक साक्षात्कार में स्टेन का कहना था कि बोफोर्स तोप खरीद सौदे में हुए 64 करोड़ रुपये के घोटाले में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है. राजीव ने इस सौदे में घूस तो नहीं ली थी, लेकिन पर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद उन्होंने मुख्य आरोपी और इतालवी व्यापारी अट्टावियो क्वात्रोची को कानूनी फंदे से बचाया.
कूटनीति में विफलता
श्रीलंका में सिंहली और तमिलों के आपसी विवाद की वजह से गृहयुद्ध चल रहा था. उस समय भारत देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिट्टे को खत्म करने के लिए श्रीलंका में भारतीय शांति सेना भेज दी. शांति सेना ने तमिलों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और नतीजा ये हुआ कि भारत में मौजूद तमिल भी नाराज हो गए. जिसका परिणाम यह हुआ कि 21 मई, 1991 को श्रीपेरंबटूर में एक जनसभा को संबोधित करने गए राजीव गांधी की नृशंसता से हत्या कर दी गई.
मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने शासन काल में कुछ ऐसे फैसले लिए जिसको लेकर आज तक उनकी आलोचना की जाती है. ऐसे ही एक फैसला है शाहबानो का केस. मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को अपने पति से केस जीत चुकी थी. कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में गुजारा खर्च देने का के लिए उसके पति को आदेश दिया था. उस समय इस फैसले का मुस्लिम संगठनों ने यह कहते हुए सख्त विरोध किया था कि यह इस्लामी कानून के खिलाफ है. कई साल तक चले इस विरोध के बावजूद आखिरकार 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया. इस फैसले को लेकर उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगा था.
विकीलीक्स का नया खुलासा
इसी साल विकीलीक्स ने यह दावा किया था कि भारत का प्रधानमंत्री बनने से पहले जब राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस के पाइलट के तौर पर काम कर रहे थे तब उन्होंने सन 1970 में स्वीडन की एक कंपनी साब स्कानिया, जो भारत को विगर एयरक्राफ्ट बेचना चाह रही थी, की ओर से बिचौलिए का काम किया था. किसी वजह से यह सौदा नहीं हो सका. विकीलीक्स के हवाले से द हिंदू के इन आश्चर्यजनक खुलासों की मानें तो इस सौदे में राजीव गांधी मुख्य मध्यस्थ के तौर पर जुड़े रहे और उनके पारिवारिक संबंधों ने भी इस सौदे को संपन्न करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
Prime Minister Rajiv Gandhi Controversies in Hindi
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