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कहते हैं हुनर छुपाने के बावजूद भी नहीं छुपता. कोई उस पर कितना भी प्रतिबंध लगाए उसे तो बाहर निकल कर आना ही है और जब वह बाहर निकलकर आता है तब वह अपनी अलग ही दुनिया बना लेता है. हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध सूफी गायक कैलाश खेर भी अपनी कामयाबी से पहले कुछ इसी तरह के हुनर को पाले हुए थे जिन्हें फिल्म ‘अंदाज’ से उसे बाहर लाने का मौका मिला. यह फिल्म 2003 में रिलीज हुई थी.
बॉलीवुड में तमाम दिग्गजों के बीच गायक कैलाश खेर ने अपनी अलग तरह की आवाज के साथ गायकी के क्षेत्र में कदम रखा और थोड़े ही समय में अच्छी खासी कामयाबी हासिल कर ली. कैलाश खेर को सुनने वाले कहते हैं कि इनकी गायकी आपको किसी और ही दुनिया में ले जाती है. उनकी आवाज में जिस तरह का आकर्षण है भारत के पुरुष गायकों में शायद ही होगी.
7 जुलाई, 1973 को जन्मे कैलाश खेर संगीत के साथ हमेशा कुछ ना कुछ प्रयोग करते ही रहते हैं और उनका प्रयोग हमेशा सराहनीय होता है. कहा जाता है कि कैलाश खेर ने अपनी जिंदगी के शुरुआती दौर में बहुत ही दुख और तकलीफें झेलीं. वह दिल्ली में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ संगीत भी सीखा करते थे. उस समय सिखाने वाले लोग उनकी आवाज को खराब बताकर उन्हें संगीत न सीखने की सलाह देते थे. उस वक्त उन्हें किसी पर गुस्सा नहीं आता था और न ही इसके लिए भगवान से कोई शिकायत किया करते थे.
रब्बा इश्क न होवे और अल्ला के बंदे हंस दे.. से गीत-संगीत की दुनिया में पहचान बनाने वाले कैलाश खेर ने बहुत कम समय में ही अपना मुकाम बना लिया. गायक कैलाश खेर ने अपनी सूफियाना आवाज से श्रोताओं के दिल में जगह बनाई है.
आज कैलाश खेर की गिनती भारतीय सिनेमा के बेहतरीन गायकों में होती है. सूफी गानों के साथ रॉक का फ्यूजन कर उन्होंने जो शैली विकसित की है वह गजब की है. कैलाश खेर ने कई एलबम और फिल्मों में अपनी आवाज का जादू चलाया है. इनकी खनकती आवाज के जादू से एड फिल्मों ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी कैलाश खेर की तूती बोलती है. उन्होंने हॉलिवुड फिल्म “कपल्स रिट्रीट” में अपनी गायिकी से सबको प्रभावित किया है.
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