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किसी भी देश की युवा शक्ति उस देश की बुनियाद होती है. इस बात को वैदिक धर्म के ज्ञाता स्वामी विवेकानन्द भली-भांति समझते थे. उनका कहना था कि युवा किसी भी समाज और राष्ट्र के कर्णधार होते हैं और वही उसके भावी निर्माता हैं. उनका कहना था कि युवा शक्ति वह स्वरूप है जो नवसृजन के लिए हर जगह उभरनी चाहिए. भारत की युवा पीढ़ी को स्वामी विवेकानन्द से निःसृत होने वाले ज्ञान, प्रेरणा एवं तेज के स्रोत से लाभ उठाना चाहिए.
स्वामी विवेकानन्द का जन्म कलकता में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था. इसके पूर्व आश्रम का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त अथवा ‘नरेन्द्र’ था. विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. साल 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने भी अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष मनाया था और इसी को संज्ञान में लेते हुए भारतीय सरकार ने भी हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का निर्णय लिया.
स्वामी विवेकानन्द का धार्मिक तथा सामाजिक बातों में उनका दृष्टिकोण तर्कवादी तथा प्रगतिशील था. दार्शनिक अध्ययन एवं संगीतशास्त्र आदि में उनकी प्रवीणता सबको आश्चर्यचकित करती थी. अपने इसी गुण की वजह से वह अपने साथियों से श्रेष्ठ थे. उन्होंने छोटी से उम्र में ही न केवल भारतीय शास्त्रों का अध्ययन कर ड़ाला बल्कि पाश्चात्य विचारधाराओं का भी अध्ययन करके आत्मसात कर लिया. बचपन से ही उनकी तर्कबुद्धि इतनी ज्यादा पैनी थी कि लगभग सभी मुद्दों पर वह दलीलें रखा करते थे.
आध्यात्मिक बातों के प्रति स्वामी विवेकानन्द का विशेष आकर्षण था. वह मानते थे कि सब प्रकार के शरीरों में मानव-शरीर ही श्रेष्ठतम है. उनका मानना था कि मनुष्य ही श्रेष्ठतम जीव है. मनुष्य सब प्रकार के प्राणियों में यहां तक कि देवादि से भी श्रेष्ठ है. देवताओं को भी ज्ञान-लाभ के लिए मनुष्यदेह धारण करनी पड़ती है. एकमात्र मनुष्य ही ज्ञान-लाभ का अधिकारी है, यहां तक कि देवता भी नहीं. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार जीवित ईश्वर तुम लोगों के भीतर रहते हैं, तब भी तुम मंदिर, गिरजाघर आदि बनाते हो और सब प्रकार की काल्पनिक झूठी चीजों में विश्वास करते हो. मनुष्य-देह में स्थित मानव-आत्मा ही एकमात्र उपास्य ईश्वर है.
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