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विश्व शरणार्थी दिवस: दर-दर की ठोकरें खाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

Special Days
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वह लोग बहुत ही भाग्यशाली हैं जिनके पास अपनी एक पहचान है, जो देश के निवासी हैं और जिन्हें मुख्यधारा में शामिल करके शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की सुविधा दी जा रही है. सबसे अहम बात तो उन्हें राजनीतिक अधिकार प्राप्त है लेकिन आपने कभी यह सोचा है कि अगर किसी व्यक्ति को यह सुविधा और अधिकार न मिले तो उसका जीवन कैसा होगा.


Refugee) अनिश्चित भविष्य के साथ जी रहे हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. रिपोर्ट की मानें तो शरणार्थियों के पुनर्स्थापन के लिए जो कोशिशें हो रही हैं वो नाकाफी हैं.


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जिन कारणों से शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है उनमें युद्ध, प्राकृतिक आपदा और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं. लगातार हो रहे युद्ध, प्राकृतिक आपदा की वजह से आज मानव अस्थाई रूप से रहने के लिए विवश हो रहा है तथा अपना जीवनयापन करने के लिए मजदूरी कर रहा है. कहने को तो इनके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार बने हुए हैं लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं है. सरकार और राजनीतिक पार्टियों से लेकर आम लोगों तक कोई इनकी बातें सुनने के लिए तैयार ही नहीं है.


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Refugee) एजेंसी चाहती है कि दुनिया के सभी देश विस्थापितों को सुरक्षा देने की दिशा में गंभीरता के साथ काम करें.


संयुक्त राष्ट्र ने इस विषय की गंभीरता को समझते हुए हर वर्ष 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) मनाने का निर्णय किया. 04 दिसम्बर, 2000 को यह घोषणा की गई जिसे 20 जून, 2001 से लागू कर दिया गया. इस दिन को मनाने का मुख्य कारण लोगों में जागरुकता फैलानी है कि कोई भी इंसान “अमान्य” नहीं होता फिर चाहे वह किसी भी देश का हो. एकता और समन्वय की भावना रखते हुए हमें सभी को मान्यता देनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचसीआर शरणार्थी लोगों की सहायता करती है.


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विश्व शरणार्थी दिवस


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