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रानी लक्ष्मीबाई: पीठ पर बच्चे को बांधकर निकली जब एक वीरांगना

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इतिहास के पन्नों पर यदि नजर डालें तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. उस समय के साक्ष्य से पता चलता है कि महिलाओं ने जब-जब अपने राज्य के लिए शस्त्र उठाए हैं तब-तब आंदोलन ने बड़ा रूप लिया है. महिलाओं की भूमिका की चर्चा किए बगैर 1857 के इतिहास को भी पूरा नहीं माना जाता.

उस दौरान आजादी के महासंग्राम का स्वर्णिम अध्याय बनी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत को यह देश कभी नहीं भूल सकता. आज महारानी लक्ष्मीबाई शहीदी दिवस है. आज ही के दिन वर्ष 1857 में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गई थीं.


rani laxmi baiमहारानी लक्ष्मीबाई

अश्वारोहण और शस्त्र-संधान में निपुण महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी किले के अंदर ही महिला-सेना खड़ी कर ली थी, जिसका संचालन वह स्वयं मर्दानी पोशाक पहनकर करती थीं. उनके पति राजा गंगाधर राव यह सब देखकर प्रसन्न रहते. कुछ समय बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, पर कुछ ही महीने बाद बालक की मृत्यु हो गई. पुत्र वियोग के आघात से दु:खी राजा ने 21 नवंबर, 1853 को प्राण त्याग दिए. झांसी शोक में डूब गई. अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के बल पर झांसी पर चढ़ाई कर दी.

झांसी की मुट्ठी भर सेना ने रानी को सलाह दी कि वह कालपी की ओर चली जाएं. अपने विश्वसनीय चार-पांच घुड़सवारों को लेकर रानी कालपी की ओर बढ़ीं. लेकिन कालपी में भी अंग्रेजों ने रानी का पीछा नहीं छोड़ा.


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महारानी लक्ष्मीबाई और 1857 की लड़ाई

22 मई, 1857 को क्रांतिकारियों को कालपी छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा. 17 जून को फिर युद्ध हुआ. रानी के भयंकर प्रहारों से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा. महारानी की विजय हुई, लेकिन 18 जून को ह्यूरोज स्वयं युद्धभूमि में आ डटा. लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख को सौंप दिया. सोनरेखा नाले को रानी का घोड़ा पार नहीं कर सका. वहीं एक सैनिक ने पीछे से रानी पर तलवार से ऐसा जोरदार प्रहार किया कि उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और आंख बाहर निकल आई. घायल होते हुए भी उन्होंने उस अंग्रेज सैनिक का काम तमाम कर दिया और फिर अपने प्राण त्याग दिए. 18 जून, 1857 को बाबा गंगादास की कुटिया में जहां इस वीर महारानी ने प्राणांत किया वहीं चिता बनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया.


लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति थीं बल्कि एक कुशल प्रशासक भी. ह्यूरोज जो उनके शत्रु से कम नहीं थे, ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि उन्होंने जितने भी विरोधियों का सामना किया उनमें सबसे अधिक खतरा उन्हें लक्ष्मीबाई से ही था. इस वीरांगना को यह देश हमेशा याद रखेगा.


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