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भारतीय समाज शुरू से ही कुरीतियों, रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ समाज रहा है. यहां यदि इन कुप्रथाओं को भेदकर एक आधुनिक समाज बनाने की अगर किसी ने कल्पना की थी तो वे भारतीय नवजागरण के अग्रदूत राजा राम मोहन राय थे. आधुनिक भारत के निर्माता राजा राम मोहन राय (Raja Ram Mohan Roy Profile in Hindi) को सबसे अधिक इस बात के लिए जाना जाता है कि उन्होंने ताउम्र महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में व्याप्त बुराइयों को नष्ट करने का प्रयास किया. उनके अंदर महिलाओं के लिए एक अलग ही दर्द था जो उन्हें कहीं और से नहीं बल्कि उनके अपने परिवार से ही मिला जहां वह अपनी भाभी को सती होते देख कांप उठे थे.
भाभी-देवर का अनोखा प्यार
राजा राममोहन राय अपनी भाभी के बहुत ही चहेते देवर थे. उनकी हर छोटी-छोटी जरूरतों की पूर्ति का खयाल उनकी भाभी रखा करती थीं. राजा राम मोहन राय को यह नहीं पता था जो उन्हें सबसे अधिक प्यार करती है वह पहले तो अपने पति को खो देगी और उसके बाद समाज के ठेकेदार विभिन्न तरह की प्रथाओं का हवाला देकर उसे जिन्दा जलाने की पूरी तैयारी कर लेंगे.
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समाज के ठेकेदारों का निर्मम रूप
राजा राम मोहन राय को किसी काम से इंग्लैण्ड जाना पड़ा. उनके जाने के बाद बड़े भाई की अचानक मृत्यु हो गई. उस समय समाज में सतीप्रथा अपनी जड़ें जमा चुकी थी. पति की मृत्यु के बाद राजा राम मोहन राय की भाभी सती नहीं होना चाहती थीं परन्तु उस समय धर्म के ठेकेदारों ने उनकी भाभी को जिन्दा जलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
जब यह घटना घटी उस समय राम मोहन राय विदेश में थे. माना जाता है कि गांव के लोगों ने नगाड़े की आवाज में भाभी की चीत्कार, आर्तनाद को दबा दिया. जोर-जोर से नगाड़े बजा कर घर से खींचते हुए उनकी भाभी को चिता में बांध कर आग लगा दिया गया. माना जाता है कि इस घटना से पहले भाभी ने अपने देवर के लिए एक पत्र भी लिखकर छोड़ा था. कुछ समय बाद राजा राममोहन राय विदेश से वापस आए. अपने कमरे में जाते ही भाभी द्वारा लिखे उस पत्र को पढ़ कर उन्हें कैसा लगा होगा इसकी कल्पना करना बेहद कठिन है.
भाभी के त्याग ने राजा राम मोहन राय को किया द्रवित
भाभी का लिखा हुआ पत्र पढ़कर और धर्म के नाम पर चलने वाली इस नृशंसता को देख कर, राजा राम मोहन राय का दिल चीत्कार कर उठा. वे भाभी को बचा तो नहीं सके लेकिन उन्होंने समाज के ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. भाभी के त्याग ने उन्हें सती प्रथा उन्मूलन एवं विधवा पुनर्विवाह के लिए काम करने पर मजबूर कर दिया था. उन्होंने समाज की कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के खिलाफ खुल कर संघर्ष किया और तब के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से 1929 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया.
राजा राममोहन राय का संक्षिप्त जीवन परिचय
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में 22 मई, 1772 को ब्राह्मण रमाकांत राय के घर हुआ था. बचपन से ही उन्हें भगवान पर भरोसा था लेकिन वह मूर्ति पूजा के विरोधी थे. कम उम्र में ही वह साधु बनना चाहते थे लेकिन माता का प्रेम इस रास्ते में बाधा बना. परंपराओं में विश्वास करने वाले रमाकांत चाहते थे कि उनके बेटे को ऊंची तालीम मिले. इसके लिए कम उम्र में ही राममोहन राय को पटना भेज दिया गया. वहां जाकर उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की और समाज में बदलाव की लहर लाने का निश्चय किया. राजा राममोहन राय को मुग़ल सम्राट अकबर द्वितीय की ओर से ‘राजा’ की उपाधि दी गई थी. आजीवन रूढि़वादी रिवाजों को दूर करने के लिए प्रयासरत राममोहन राय का 27 सितंबर, 1833 को ब्रिस्टल इंग्लैंड में निधन हो गया.
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