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भारत में जो भी त्यौहार मनाया जाता है उसे कहीं न कहीं शुभ कार्य से जोड़ा जाता है. ऐसे ही एक त्यौहार है अक्षय तृतीया. हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है. हिंदू पुराणों में वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है. “अक्षय” का शब्दिक अर्थ है – जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे.
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परशुराम का अवतार
अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था. इसीलिए आज के दिन को उनकी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. भगवान शिव के भक्त परशुराम ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया. निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था.
विवाह के लिए पवित्र
अक्षय तृतीया बड़ी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है इसलिए इस त्यौहार के दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है. यह एक ऐसा शुभ अवसर है जिसमें विवाह करने के लिए किसी भी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है. इसमें सभी तरह के मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं. इस दिन सामूहिक विवाह सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है.
दान-पुण्य का अवसर
अक्षय तृतीया के दिन को दान-पुण्य के लिए सही माना जाता है. इस दिन दिया गया दान अक्षय हो जाता है. माना जाता है इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करने की रीत है. इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है.
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खरीदारी का दिन
इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना के साथ सोना, चांदी, अन्य आभूषण, कीमती रत्न, रियल स्टेट खरीद के लिए शुभ माना जाता है. धारणा है कि आज के दिन शुरू किया गया कोई भी काम और खरीदी गई संपत्ति घर में संपन्नता लाती है. इसके लिए देशभर के सर्राफा व्यपारी ग्राहकों को लुभाने के लिए सोने और चांदी के सामान पर कई तरह की छूट वाली योजनाएं निकालते हैं.
हिंदू पुराण.
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