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अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्घ सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chisti) की दरगाह पर 801vaaवां सालाना उर्स 12 मई से शुरू होने जा रहा है. उर्स में शामिल होने के लिए बड़ी तादाद में जायरीन अजमेर पहुंच रहे हैं. इसका संबंध किसी खास धर्म से नहीं होता. उर्स के दौरान भारत ही नहीं, बल्कि विभिन्न देशों के जायरीन अजमेर पहुंचकर दरगाह में हाजिरी लगाते हैं.
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
उर्स मुबारक को लेकर क्षेत्र में उत्साह का माहौल है. इसको देखते हुए प्रशासन ने भी अपनी कमर कस ली है. पाकिस्तान की जेल में कैदियों के हमले में घायल सरबजीत सिंह की मौत के बाद अजमेर के दरगाह के भीतर और उसके आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. दरगाह परिसर के अंदर और बाहर सुरक्षा की लिहाज से लगाए गए सीसीटीवी कैमरों की जांच पूरी कर ली गई है. सुरक्षा के लिहाज से हजारों पुलिसकर्मी परिसर के आसपास गस्त लगा रहे हैं.
ट्रेन चलाने का निर्णय
अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 801वें उर्स के अवसर पर रेलवे ने अजमेर से हैदराबाद, काचीगुडा, औगोल एवं मछलीपट्टनम के लिए विशेष ट्रेन चलाने का निर्णय लिया है.
कव्वाल की महफिल
उर्स के दिनों में यहां के महफिलखाने में देश-विदेश से आए मशहूर कव्वाल (Kawwal) अपनी कव्वालियां पेश करते हैं. उर्स के मौके पर लाखों की संख्या में लोग चादर चढ़ाने अज़मेर आते हैं. इस दौरान अज़मेर शरीफ़ की रौनक देखते ही बनती है. दरगाह और उसके आसपास का पूरा इलाका सुगंध से महक उठता है. यह दरगाह शरीफ़ वास्तव में एक ऐसी जगह है जहां हर आम और खास मनुष्य अपने सारे दुःखों को भूल जाता है और जाते समय अपनी झोलियां खुशियों से भरकर ले जाता है.
कौन हैं हजरत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती
हजरत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह एक अति प्रसिद्ध सूफी सन्त थे. इन्होंने 12वीं शताब्दी में अजमेर में चिश्ती पंथ की शुरुआत की थी. ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान (Iran) में सन् 1141 ई0 में हुआ था. बचपन से ही उनका मन सांसारिक चीजों में नहीं लगता था. वह परिवार से अलग हट कर रूहानी दुनिया से जुड़े रहते थे. वह मानव जगत की सेवा को ही अपने जीवन का एकमात्र धर्म मानते थे. 50 वर्ष की आयु में ही ख्वाज़ा जी भारत आ गए यहां उनका मन अजमेर में ऐसा रमा कि वे फिर यहीं के होकर रह गए और यहीं पर भक्तों की सेवा में लग गए. वह हमेशा खुदा से अपने भक्तों का दुःख-दर्द दूर करके उनके जीवन को खुशियों से भरने की दुआ मांगते थे. ख्वाज़ा साहब ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई और खुदा की इबादत में गुजार दिया. हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी लोग अपनी परेशानियां और दुःख लेकर उनके पास आते और अपनी झोलियों में खुशियां और सुकून भर ले जाते थे. ख्वाज़ा साहब ने दुनिया के लोगों का भला करते हुए सन् 1230 ई0 में इस जहां से रूखसत ले ली थी.
दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है
ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह-ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलंबियों के लिये एक पवित्र स्थान है. मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान है. इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. इसलिए इसे भारत का मक्का भी कहा जाता है. हर वर्ष सभी धर्मों के लाखों लोग इस दरगाह में मन्नत मांगने आते हैं और मुराद पूरी होने पर अपनी हैसियत के अनुसार चादर चढ़ाते हैं. इनके भक्तों मे गरीब से गरीब और अमीर से अमीर लोग होते हैं. खिलाड़ियों और फिल्मी दुनिया की कोई न कोई बड़ी हस्ती अपनी मुराद पूरी करने के लिए इस दरगाह पर दस्तक देती रहती है.
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