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Raja Ravi Varma: साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण करने वाला पहला कलाकार

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प्रख्यात फिल्मकार और टीवी सीरियल के जरिए देश में एक क्रांति लाने वाले रामानंद सागर ने जब ‘रामायण’ सीरियल बनाया था तो उस समय तक लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं का जीवंत और वास्तविक रूप पहले कभी नहीं देखा था. तब इस सीरियल ने लोगों पर काफी प्रभाव छोड़ा था. इतिहास में कुछ इसी तरह का माहौल उस दौर में देखने को मिला जब विश्वविख्यात चित्रकार राजा रवि वर्मा ने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया था.

चित्रकार राजा रवि वर्मा पहले भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी शैली के रंग-रोगन-सामग्रियों और तकनीक का प्रयोग भारतीय विषय वस्तुओं पर किया. उनकी चित्रकारी ने हिंदू देवी-देवताओं की सी छवियां पेश करनी शुरू की, जैसी पहले कभी नहीं की गई थीं.


राजा रवि वर्मा का जीवन

भारत के मिथकीय चरित्रों पर कृतियां बनाने वाले राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे से गांव किलिमन्नूर में हुआ. उनके पिता एक बहुत ही बड़े विद्धान थे जबकि उनकी माता एक लेखिका थीं. पांच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारंभ कर दिया था. उनके चाचा कलाकार राजा राज वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारंभिक शिक्षा दी.


अपने चित्रों से किया प्रभावित

चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये जहां राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई. वर्मा ने चित्रकला की शुरुआती कला चित्रकार रामा स्वामी नायडू से सीखी. यहीं वह तंजौर शैली से मुखातिब हुए. इसके बाद उन्हें ब्रिटिश चित्रकार थियोडोर जेनसन से सीखने का मौका मिला. यहीं से उनके सामने पश्चिम की आधुनिक चित्रकला की एक नयी दुनिया के दरवाजे खुल गए. वर्मा को असली पहचान सन 1873 में ‘मल्लप्पू चुटिया नायर स्त्री’ नामक चित्र से मिली. आस्ट्रिया के वियना में सम्पन्न हुई चित्र प्रदर्शनी में यह चित्र पुरस्कृत हुआ. वर्मा की पेंटिंग को विश्व कोलंबियन प्रदर्शनी में भेजा गया जो 1893 में शिकागो में आयोजित किया गया. वहां उन्हें अपने चित्रकारी के लिए दो गोल्ड मेडल भी मिले.


राजा रवि वर्मा की शैली

भारतीय इतिहास में राजा रवि वर्मा का नाम ऐसे चित्रकार के रूप में लिया जाता है जिन्होंने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर भारत के मिथकीय चरित्रों में अपनी कल्पना के सुंदर रंग भरे. शुरुआत में उनकी कलाकृतियों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया लेकिन बाद में कई लोग उनकी चित्रकारी शैली से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने अपनी चित्रकारी में सरस्वती, दुर्गा, नल-दमयंती तथा दुष्यंत-शकुंतला जैसे पौराणिक चरित्रों पर आधारित देवी-देवताओं के चित्र खूबसूरती से उकेरे. उनकी चित्रकारी शैली को अगर देखें तो यह बिलकुल ही यथार्थ चित्रण से हटकर है. उन्होंने अपनी कला को बेहद ही सीमित दायरे में रखा.


राजा रवि वर्मा के नाम पर पुरस्कार

कला के इस महान आचार्य ने अक्टूबर 1906 में दुनिया से अलविदा कह दिया. भारतीय चित्रकला में उनके योगदान को देखते हुए केरल सरकार ने उनकी याद में राजा रवि वर्मा पुरस्कार शुरू किया जो प्रति वर्ष कला एवं संस्कृति के क्षेत्र की किसी होनहार शख्सियत को दिया जाता है.


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