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प्राचीन भारत की तरह आज भी भारतीय समाज में दलित होना एक बहुत ही बड़ा अभिशाप है. इस समाज में व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके पैदा होते ही जाति और वंश शब्द अपने आप जुड़ जाते हैं. ये शब्द ऐसे हैं जिससे छुटकारा पाना किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव जैसा है. लेकिन जब इंसान अपने कर्मों का स्तर इतना ऊंचा कर लेता है तब उसके लिए इन शब्दों के मायने बिलकुल नहीं रह जाते. उस समय वह समाज में किसी जाति या धर्म की वजह से नहीं जाना जाता बल्कि एक ऐसे महापुरूष के रूप में उसकी पहचान बनती है जो अपने त्याग और परिश्रम से समाज को रास्ता दिखाता है.
क्या ‘सहारा श्री’ का साम्राज्य ढह रहा है !!
भारतीय संविधान की रचना में महान योगदान देने वाले डाक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को अस्पृश्य मानी जाने वाली महार जाति में हुआ. उस समय पूरे समाज में जाति-पाति, छूत-अछूत, ऊंच-नीच आदि विभिन्न सामाजिक कुरीतियों का प्रभाव था. देश में मनुवादी व्यवस्था के बीच समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में विभाजित था. शूद्रों में निम्न व गरीब जातियों को शामिल करके उन्हें अछूत की संज्ञा दी गई और उन्हें नारकीय जीवन जीने को विवश कर दिया गया. उन्हें छूना भी भारी पाप समझा गया. बाबा साहेब बचपन से ही इसकी पीड़ा को महसूस करते आ रहे थे. छोटी जाति के कारण उन्हें संस्कृत भाषा पढ़ने से वंचित रहना पड़ा था.
लेकिन कहते हैं जहां चाह है वहीं राह भी है. प्रगतिशील विचारक भीमराव अंबेडकर ने इन्हीं सामाजिक कुरीतियों के बीच सबसे पहले तो ऊंची शिक्षा प्राप्त की इसके बाद भारत के राष्ट्रनिर्माण में एक ऐसे राष्ट्रपुरूष की भूमिका अदा की जिन्होंने समूचे देश के संबंध में, भारत के इतिहास के संबंध में और समाज के बारे में एक महत्वपूर्ण वैचारिक योगदान दिया है.
डॉ. अंबेडकर ने प्रजातंत्र और साम्यवाद में समन्वय स्थापित करने का स्वप्न साकार करने का प्रयास किया. उन्होंने हजारों वर्षों से हिंदू धर्म द्वारा मान्य अस्पृश्यता को कानून के बल पर नष्ट करवाया. 29 अगस्त, 1947 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर को संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष पद पर सुशोभित किया गया जिसके बाद उन्होंने संविधान में यह प्रावधान रखा कि, ‘किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता या छुआछूत के कारण समाज में असमानता उत्पन्न करना दंडनीय अपराध होगा.
इसके साथ-साथ डॉ. अंबेडकर ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली लागू करवाने में भी सफलता हासिल की. उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर बराबर बल दिया. वह लोगों से कहा करते थे कि महिलाओं और अपने बच्चों को शिक्षित कीजिए. उन्हें महत्वाकांक्षी बनाइए ताकि समाज और ज्यादा सुदृढ़ हो सके. समाज के प्रति बाबा साहेब की इस सोच को 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपना लिया था जिसे 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया.
इस तरह से बाबा साहेब ने देश को जन-जन में निर्माण किए गये भेदों को मिटाकर समान अधिकारों को स्थापित करने वाला संविधान प्रदान किया और ढाई हजार बरसों के बाद पहली बार प्रजातंत्र के मूल्यों की नींव रखी. संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को देश व समाज के लिए उनके आजीवन समग्र योगदान को नमन करते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1990 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया.
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