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आज जहां भारत की न्याय व्यवस्था की बात की जाती है तो ऐसे बहुत सारे वकील हैं जो पैसे बनाने के लिए किसी भी तरह के मुकदमे में मुंह खोलकर पैसा मांगते हैं, अब वह मुकदमा चाहे भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए हो या फिर अपराधियों के अपराध को छुपाने के लिए. लेकिन भारत में एक ऐसे वकील भी रहे हैं जिनका मुकदमा लड़ने का ढंग बिलकुल ही निराला था. स्वतंत्रता सेनानी और भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant Profile in Hindi) जब किसी केस को लेते थे तो उनका इस बात पर जोर रहता था कि मुवक्किल अपने मुकदमों के बारे में सही जानकारी दे.
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गोविंद बल्लभ पंत का जीवन (Life of Govind Ballabh Pant)
गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) जी का जन्म 10 सितम्बर, 1887 ई. वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के खूंट नामक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम गोविंदी था जबकि पिता मनोरथ पंत थे. इस परिवार का सम्बन्ध कुमाऊं की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है. गोविंद बल्लभ पंत ने 1905 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और 1909 में उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की. काकोरी मुकद्दमे ने एक वकील के तौर पर उन्हें पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई.
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एक सक्रिय देशभक्त
एक सक्रिय देशभक्त होने के नाते गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) ने 1914 से ब्रिटिश राज के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था. वकालत में ज्ञान होने की वजह से पंत जी ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था. महात्मा गांधी जी को अपना आदर्श मानने वाले पंत नमक आंदोलन की वजह से 1930 में कई सप्ताह के लिए जेल भी गए. पंत जी राजनीति के एक माहिर नेता थे. उनके अंदर वह राजनीतिक क्षमता थी जिससे कई राजनेताओं ने उनसे प्रेरणा ली. 1940 के सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय होने की वजह से पंत जी ने कई दिनों तक जेलों में बिताए. सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा. उन्हें 1942 में तीन साल तक कांग्रेस के दूसरे सदस्यों के साथ अहमदनगर किले में रखा गया.
पंत जी का राजनीतिक जीवन
वर्ष 1937 में पंत जी संयुक्त प्रांत के प्रथम मुख्यमंत्री बने और 1946 से 1954 तक वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वह उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र भारत के पहले मुख्यमंत्री थे. 10 जनवरी, 1955 को उन्होंने भारत के गृह मंत्री का पद संभाला. मुख्यमंत्री रहते हुए पंत जी ने जमींदारी उन्मूलन कानून को प्रभावी बनाने में अहम योगदान दिया.
सन 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क–वितर्क के धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न’ से विभूषित किया गया. हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने में भी गोविंद वल्लभ पंत जी (Govind Ballabh Pant) का महत्वपूर्ण योगदान रहा. सात मार्च, 1961 को दिल की बीमारी की वजह से गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया.
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