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भारतीय राजनीति में कई ऐसे ऐतिहासिक मोड़ आए हैं जिनकी वजह से देश का इतिहास बेहद प्रभावित हुआ है. देश की गुलामी से लेकर आजादी और उसके बाद देश की पहली सरकार के गठन तक सभी ने देश की रूपरेखा को प्रभावित किया. इसी घटनाक्रम में एक अहम पड़ाव था डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी (Dr. Rajendra Prasad Profile in Hindi) का भारत का पहला राष्ट्रपति बनना.
सरदार वल्लभ भाई पटेल की वजह से बने डॉ. प्रसाद राष्ट्रपति
भारतीय राजनीति के कई ऐसे सत्य हैं जो आपको हो सकता है ऑफिशियल रिकॉर्डों या लोगों की जुबानी कम ही सुनने को मिलें. ऐसे घटनाक्रमों का उल्लेख सिर्फ उन लोगों के पास मिलता है जो उससे जुड़े होते हैं. ऐसी ही एक घटना है भारत के पहले राष्ट्रपति को चुनने की प्रकिया. कई जानकार मानते हैं कि 1950 में संविधान लागू होने के बाद राष्ट्रपति पद की नियुक्ति के लिए काफी बहस हुई. जहां एक ओर नेहरू जी राज गोपालाचारी को राष्ट्रपति पद पर बिठाना चाहते थे वहीं उनकी इस मंशा को अधूरा रखने के लिए सरदार पटेल ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का नाम सुझाया.
राज राजगोपाचारी उस समय भारत के गवर्नर जनरल थे. सभी जानते थे कि उनकी विचारशैली दक्षिणपंथी थी और उन्हें पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थक माना जाता था. ऐसे में कई राष्ट्रवादी उनकी कार्यप्रणाली से बेहद खफा रहते थे. इन लोगों में पटेल जी भी शामिल थे. सरदार पटेल का मानना था कि अगर राज गोपालचारी राष्ट्रपति बनते हैं और प्रधानमंत्री नेहरू जी रहते हैं तो भारत की आर्थिक व्यवस्था चरमरा सकती है और इससे गरीबों को दीर्घकालिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
कहा तो यह भी जाता है कि नेहरू जी ने राजेन्द्र बाबू से यह लिखवा लिया था कि वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं ही नहीं लेकिन सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति का प्रयोग कर नेहरू जी के इस षडयंत्र को कामयाब नहीं होने दिया.
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गांधी जी के अनन्य भक्त थे राजेन्द्र बाबू
पूर्वी चंपारण में उन्होंने 1934-1935 में भूकंप पीड़ितों की सेवा प्राण प्रण से की. उन्होंने गांधी जी का संदेश बिहार की जनता के समक्ष इस तरह से प्रस्तुत किया कि वहां की जनता उन्हें ‘बिहार का गांधी’ ही कहने लगी. लेकिन यह भी एक सत्य है कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के विचारों और उनके आदर्शों में बेहद आस्था रखते थे. राजेन्द्र बाबू को गांधी जी का बेहद करीबी भी माना जाता था. गांधीजी ने एक बार कहा था—‘‘मैं जिस भारतीय प्रजातंत्र की कल्पना करता हूं, उसका अध्यक्ष कोई किसान ही होगा.’’
स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत के सर्वोच्च पद के लिए जनता के प्रतिनिधियों ने एकमत होकर राष्ट्रपति पद के लिए जब राजेन्द्र प्रसाद को चुना तो उनका यह कथन भी साकार हो गया. देश के स्वतंत्र होने पर उन्हें प्रथम राष्ट्रपति पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया और दूसरी बार भी वह इस पद के लिए चुने गए.
सादगी भरा राष्ट्रपतित्व काल
भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बारे में एक बात बहुत अधिक चर्चित है कि वह सरकारी खजाने से बेहद अधिक खर्चा करती थीं. उनकी हवाई यात्राओं का बजट हमेशा चर्चा का विषय रहा. लेकिन राष्ट्रपति भवन को अपने पहले राष्ट्रपति के तौर पर एक ऐसा शख्स मिला था जिसने सादगी की परिभाषा को नई सिरे से परिभाषित किया था.
राष्ट्रपति बनने पर उन्होने ‘राष्ट्रपति भवन’ से रेशमी पर्दे आदि हटवा कर खादी का सामान – चादर, पर्दे आदि लगवाए थे जो उनकी सादगी-प्रियता का प्रतीक है. वह विधेयकों पर आंख बंद करके हस्ताक्षर नहीं करते थे बल्कि अपने कानूनी ज्ञान का उपयोग करते हुये खामियों को इंगित करके विधेयक को वांछित संशोधनों हेतु वापस कर देते थे और सुधार हो जाने के बाद ही उसे पास करते थे. राष्ट्रपति पद पर वह अत्यंत सादगी से रहते थे. उन्होंने अपने व्यय सीमित रखे थे. शेष धन प्रजा का धन, कल्याणकारी कार्यों में लगाने का उनका उपक्रम था. राष्ट्रपति पद से उन्होंने विश्राम लिया तो पटना स्थित सदाकत आश्रम में शेष दिन साधारण व्यक्ति की तरह बिताए. सन 1962 में उनका सम्मान ‘भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि से देश ने किया. उनका निधन 28 फरवरी, 1963 को सदाकत आश्रम पटना में हुआ.
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