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वसंत एक ऐसा ऋतु जब हवाओं में ना अधिक गर्मी होती है ना अधिक सर्दी. एक ऐसा मौसम जब नई कोपलें जन्म लेती हैं और संपूर्ण जगत में मानों एक नए जीवन का सृजन होता है. जिस तरह हम एक नए जन्में बच्चे की खुशियां मनाते हैं उसी तरह मौसम की इस शुरुआत को भी हिन्दू परंपरा में बेहद अहम माना जाता है और यह दिन तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब इस दिन के साथ जुड़ता है सरस्वती पूजा का योग.
या देवी सर्वभूतेषु सरस्वती रूपेण
देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से सबसे अहम अवतार सरस्वती मां का माना जाता है. देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं. इस अंधकारमय जीवन से इंसान को सही राह पर ले जाने का सारा बीड़ा वीणा वादिनी सरस्वती मां के कंधों पर ही है. ज्ञान ही इंसान को उसका लक्ष्य प्राप्त करा सकता है. एक अज्ञानी अपने जीवन में ना तो भौतिक और ना ही आलौकिक लक्ष्यों और मंजिलों की प्राप्ति कर सकता है. यह ज्ञान सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं व्यवाहारिक ज्ञान भी होता है. देवी सरस्वती के पाठ से ही इंसान को वह एकाग्रता और स्मरण शक्ति मिलती है जो उसे जीवन में सफल बनाती है.
वसंत पंचमी और देवी सरस्वती की पूजा
वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन पूरे भारत में देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. सरस्वती मनुष्य में जड़ता दूर कर ज्ञान संपन्न बनाती हैं. वाणी और सात्विक बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी के विपुल नाम प्राचीन ग्रंथों में वर्णित किए गए हैं.
वसंत पंचमी उमंग, उल्लास, उत्साह, विद्या, बुद्धि और ज्ञान के समन्वय का पर्व है. मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान व विवेक की अधिष्ठात्री देवी हैं. उनसे हम विवेक व बुद्धि प्रखर होने, वाणी मधुर व मुखर होने और ज्ञान साधना में उत्तरोत्तर वृद्धि होने की कामना करते हैं. पुराणों के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन ब्रह्माजी के मुख से मां सरस्वती का प्राकाट्य हुआ था और जड़-चेतन को वाणी मिली थी. इसीलिए वसंत पंचमी को विद्या जयंती भी कहा जाता है और इस दिन सरस्वती पूजा का विधान है.
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मां सरस्वती का रूप
पद्म पुराण में वर्णित मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है. वह शुभ वस्त्र पहने हैं. उनके चार हाथ हैं, जिनमें वीणा, पुस्तक और अक्षरमाला है. उनका वाहन हंस है. वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं जो हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने भीतर सत्य अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढाएं और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाएं.
आखिर कमल पर ही क्यूं बैठती हैं मां सरस्वती
अधिकांश चित्रों में और पुराणों में मां सरस्वती को कमल पर बैठा दिखाया जाता है. कीचड़ में खिलने वाले कमल को कीचड़ स्पर्श नहीं कर पाता. इसीलिए कमल पर विराजमान मां सरस्वती हमें यह संदेश देना चाहती हैं कि हमें चाहे कितने ही दूषित वातावरण में रहना पड़े, परंतु हमें खुद को इस तरह बनाकर रखना चाहिए कि बुराई हम पर प्रभाव न डाल सके. मां सरस्वती की पूजा-अर्चना इस बात की द्योतक है कि उल्लास में बुद्धि व विवेक का संबल बना रहे.
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन
कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सृष्टि में प्राण और स्वर फूंकने के उद्देश्य से ब्रह्मदेव ने मां सरस्वती की रचना की थी. यह दिन विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन वे अपनी किताबों की पूजा करते हैं और मां सरस्वती से विद्या का आशीर्वाद मांगते हैं.
सरस्वती पूजन विधि
भगवतीसरस्वती की पूजाहेतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों की रचना करके उसमेंदेवी सरस्वती कीमूर्ति स्थापित करने एवं पूजन करने का प्रचलन दिखाई पड़ताहै, किंतुशास्त्रों में वाग्देवी की आराधना व्यक्तिगत रूप में ही करने काविधानबतलाया गया है.
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सरस्वती व्रत और पूजन विधि
मां भगवती सरस्वती की पूजा के लिये वसंत पंचमी के एक दिन पूर्व चतुर्थी के दिन उपासक को संयम नियम का पालन करना चाहिए तथा पंचमी को प्रात: काल उठकर एक स्थान पर साफ सफाई कर घट स्थापना कर उसमें वाग्देवी का आह्वान करें. मां सरस्वती के चित्र एवं प्रतिमा का विधि-विधान से पूजन करें. देवी सरस्वती की आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री अधिकांश श्वेत वर्ण होती है, जिसमें दही, मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, श्वेत पुष्प, गन्ना एवं गन्ने का रस, पका हुआ गुण, मधु, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र,श्वेत आभूषण, मावा का मिष्टान, अदरक, मूली, शक्कर, घृत, नारियल, नारियल का जल, श्रीफल, ऋतु अनुसार फल आदि सामग्री का पूजन में प्रयोग होता है. वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनकर मां सरस्वती का पूजन किया जाए तो अधिक फलदायी होता है. पूजा स्थल पर गेहूं की बाली, पीला फूल, आम के पत्ते आदि का अर्पण कर मां सरस्वती से ज्ञान, बुद्धि, वाणी को प्राप्त करने की प्रार्थना करनी चाहिए.
आज सरस्वती पूजा को लोगों ने व्यवासायिक बना दिया है. बड़े-बड़े पंडालों में डीजे की तेज आवाजों में किए जाने वाली यह पूजाएं अनावश्यक होती हैं. मां सरस्वती का श्वेत वर्ण हमें सादगी की राह दिखाता है. ऐसे में मां की पूजा भी बेहद सादगी भरे अंदाज में ही की जानी चाहिए.
यह त्यौहार आज अपने मूल रूप से थोड़ा कमजोर नजर आता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में विद्या के बिना कुछ भी पाना बेहद जटिल है. विद्या की देवी के पूजन के साथ आज हमें प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहिए.
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