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इंसान मंदिर में बने पत्थर को तो भगवान मानकर उसकी पूजा करता है लेकिन वह इंसान के अंदर बसे भगवान को हमेशा नकार ही देता है. हम मंदिरों में हजारों-लाखों का चढ़ावा चढ़ा देते हैं, शिवलिंगों पर लाखों लीटर दूध अर्पित कर देते हैं, मस्जिद-मजारों पर चादरें चढ़ा देते हैं लेकिन उसी मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे के बाहर बैठे अपंग भिखारी को दया भाव से दो वक्त की रोटी देने से परहेज करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. हमें याद रखना चाहिए कि नर ही नारायण है. इस सुविचार को अपने जीवन में बाबा आमटे से बेहतर शायद ही किसी ने अपनी जिंदगी में उतारा हो.
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कुष्ठ रोगियों के मसीहा – बाबा आमटे
भारत में विनोबा भावे, मदर टेरेसा, महात्मा गांधी की तरह ही बाबा आमटे ने भी प्राणि मात्र में बसे नारायण की सेवा अपने आचरण में समाहित कर इतनी ख्याति प्राप्त की. बाबा आमटे जो एक बेहद संपन्न घराने से ताल्लुक रखते थे उन्होंने जिंदगी के सारे ऐशो-आराम छोड़ गरीबों, दुखियों और कुष्ठ रोगियों की जिंदगी संवारने में लगा दी. इतने उच्च कार्य की वजह से ही बाबा आमटे की जीवनी को लोग आदर्श मानते हैं और उनके मार्ग पर चलने की सीख देते हैं. जिन कुष्ठ रोगियों को भारतीय समाज में अछूत की निगाहों से देखा जाता है उन्हें बाबा आमटे ने दिल से लगाया.
Baba Amte Profile in Hindi– बाबा आमटे का जीवन
बाबा आमटे का जन्म 24 दिसंबर, 1914 ई. को वर्धा – महाराष्ट्र के निकट एक ब्राह्मण जागीरदार परिवार में हुआ था. पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में थे. उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता. बचपन में माता-पिता उन्हें प्यार से बाबा पुकारा करते थे. इसके बाद दीन-दुखियों की सेवा कर उन्होंने अपने इस (बाबा) नाम को सार्थक किया. बाबा आम्टे का विवाह भी एक सेवा-धर्मी युवती साधना से विचित्र परिस्थितियों में हुआ. बाबा आमटे को दो संतानें प्राप्त हुईं प्रकाश आमटे एवं विकास आमटे.
बाबा आमटे- आजादी से पहले
बाबा आमटे ने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक वकील के तौर पर की. वकील के रूप में वह बेहद सफल भी रहे लेकिन गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन ने उनकी जिंदगी बदल दी. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह भी जेल गए. उन्होंने कई गिरफ्तार हुए नेताओं के मुकदमे लड़ने के लिए अपने साथी वकीलों को संगठित किया था और इन्हीं प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वरोरा में कीड़ों से भरे कुष्ठ रोगी को देखकर उनके जीवन की धारा बदल गई. उन्होंने अपना वकालती चोगा और सुख-सुविधा वाली जीवन शैली त्यागकर कुष्ठ रोगियों और दलितों के बीच उनके कल्याण के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया.
आनंद वन की स्थापना
इसके बाद उन्होंने कुष्ठ रोगियों के बारे में जानकारी इकट्ठा की और एक आश्रम स्थापित किया जहां कुष्ठ रोगियों की सेवा अब भी निःशुल्क की जाती है. इस आश्रम का नाम है आनंद वन. यहां आने वाले रोगियों को उन्होंने एक मंत्र दिया ‘श्रम ही है श्रीराम हमारा’. जो रोगी कभी समाज से अलग-थलग होकर रहते भीख मांगते थे उन्हें बाबा आमटे ने श्रम के सहारे समाज में सर उठाकर जीना सीखाया. बाबा आम्टे ने “आनन्द वन” के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है. इसके अलावा बाबा आमटे को भारत जोड़ो आंदोलन के लिए भी याद किया जाता है. बाबा आम्टे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया. नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया.
बाबा आमटे को मिले पुरस्कार
बाबा आम्टे को उनके इन महान कामों के लिए बहुत सारे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया. बाबा आमटे को 1971 में पद्मश्री, 1978 में राष्ट्रीय भूषण, 1986 में पद्म विभूषण और 1988 में मैग्सेसे पुरस्कार मिला.
निधन
भारत के विख्यात समाजसेवक बाबा आम्टे का निधन 9 फरवरी, 2008 को आनंद वन महाराष्ट्र में हुआ था.
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