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देश तभी जाकर पूर्ण आजाद माना जाता है जब वह गणतांत्रिक होता है. गणतांत्रिक का अर्थ होता है गण यानि जनता का तंत्र. जनता के द्वारा जनता के बीच से चुने हुए प्रतिनिधियों का तंत्र ही असल मायनों में गणतंत्र कहलाता है. लेकिन भारत में आज जो हो रहा है उसे देखते हुए हमें भारत के गणतंत्र कहे जाने पर बेहद निराशा होती है. घोटालों, वंशवाद और भ्रष्टाचार ने भारत जैसे गणतंत्र की नींव हिला दी है.
आखिर क्या होता है गणतंत्र?
गणतंत्र होने का मूल अर्थ है कि अब देश का शासक अनुवांशिक राजा नहीं बल्कि जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि होगा.
उपरोक्त कथन के अनुसार साफ है कि गणतंत्र में देश का शासक अनुवांशिक राजा नहीं होगा लेकिन आज अगर हम देश की सबसे ताकतवर पार्टी यानि कांग्रेस पार्टी की तरफ देखते हैं (जिस पार्टी के कई नेताओं ने प्रधानमंत्री बन देश का प्रतिनिधित्व किया है) तो पाएंगे कि इस पार्टी में ही सबसे बड़ा वंशवाद फल-फूल रहा है. जवाहर लाल नेहरू जी की राजनीति की गद्दी को अगर उनकी सुपुत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने सहारा दिया तो वहीं राजीव गांधी ने भी मां की असमय मृत्यु के बाद उनके शासन को संभाला और अब इसी परंपरा का वहन राहुल गांधी करने को तैयार हैं.
अनुवांशिक राजाओं या शासकों की एक बड़ी जमात हमें राज्य स्तर की राजनीति में भी नजर आती है. मुलायम सिंह यादव – अखिलेश यादव, ओम प्रकाश चौटाला – अजय चौटाला आदि ऐसे कई नाम हैं जो गणतंत्र की मूल व्याख्या के विपरीत नजर आते हैं.
लोकतंत्र या भ्रष्टाचारियों का तंत्र
भारत में जनतंत्र से ज्यादा भ्रष्टाचारियों का तंत्र है. पिछले लंबे समय से देश के सामने कई बड़े घोटाले उजागर हुए हैं जिन्होंने देश को आर्थिक स्तर पर करारा झटका पहुंचाया है. एक आंकलन करें तो अगर 2 जी, कॉमन वेल्थ और कोयला घोटाला जैसी आर्थिक बर्बादियां ना हुई होतीं तो देश में आज महंगाई पर अच्छी-खासी लगाम कसी जा सकती थी.
आज राष्ट्र वास्तव में बड़े घोटालों के गणतंत्र में तब्दील हो चुका है. व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी पदों के दुरुपयोग का घुन राष्ट्र की शक्ति को खोखला कर रहा है. जब हथियारों की खरीद से लेकर नीतिगत बदलाव जैसे महत्वपूर्ण फैसले अकसर भ्रष्ट निहितार्थो से प्रभावित होते हैं, तब राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता होने की आशंका बढ़ जाती है. अगर आज भारत को एक शिथिल राष्ट्र के तौर पर देखा जा रहा है, तो इसके लिए प्रमुख रूप से दोषी भ्रष्टाचार है.
लोकतंत्र या गुण्डातंत्र
देश की राजधानी में एक लड़की को चलती बस में कुछ असामाजिक तत्व अपनी हवस का शिकार बना कर मार डालते हैं, राह चलती महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटनाएं, सरेराह लूटपाट करते लुटेरे और आए दिन होने वाली हत्याएं यह गवाही देती हैं कि देश में लोकतंत्र अब गुण्डातंत्र में तब्दील हो रहा है. गुण्डातंत्र का सबसे विकृत चेहरा देखना है तो आपको बिहार या यूपी के उन क्षेत्रों का भ्रमण करना चाहिए जहां दबंग नेता अपनी ताकत के बल पर लोगों से जबरदस्ती अपने हक में वोट डलवाते हैं.
इन सभी समस्याओं के अलावा और भी कई ऐसी परेशानियां हैं जिनकी वजह से देश को गणतंत्र कहने पर हमें संशय होता है लेकिन हालातों से लड़ना ही इंसान की आदत होती है. तमाम परेशानियों के बाद भी हम उस भारत की कल्पना करते हैं जहां देश के हर नागरिक को वोट देकर अपनी मर्जी की सरकार चुनने का हक है. अब यह अलग बात है कि उसके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि कैसे निकलेंगे और कैसे नहीं? लेकिन देश का गणतांत्रिक इतिहास हमें हमेशा इस पर गर्व करने का मौका और उद्देश्य देता है. उम्मीद करते हैं आने वाले सालों में देश इन समस्याओं से लड़ वास्तविक “गणतंत्र” कहलाने के योग्य बनेगा.
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