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शायरियों और गजलों का दौर भारत में बेहद सुहाना रहा है. आज बेशक इस कला में निपुण लोगों की संख्या कम हुई है लेकिन इसके बावजूद भारत की फिजाओं में आज भी शायरी की खूशबू फैली हुई है. इसकी मुख्य वजह है भारत में कई बेहतरीन नामचीन शायरों का होना. भारत के कुछ प्रसिद्ध शायरों में से एक हैं कैफी आजमी.
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Kaifi Azmi Shayari: कैफी आजमी
हर हिन्दुस्तानी की रगों में वतन पर मर मिटने का जोश भरने वाला गीत कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों,अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों लिखकर मुल्क की अदबी तारीख में अमर हो चुके शायर कैफी आजमी एक ऐसे फलसफे के राही थे, जिसमें वतन की मिट्टी की महक और बदकिस्मती की सिसकियां लेती जिंदगी का दर्द शिद्दत से झलकता था.
Kaifi Azmi’s Poetry: कैफी आजमी का जीवन परिचय और पहला शेर
सैयद अतहर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी की पैदाइश उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मेजवां में 14 जनवरी, 1919 को हुई. इनके पिता का नाम सैयद फतेह हुसैन रिजवी और मां का नाम हफीजुन्निसा था. कैफी ने आठ वर्ष की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया. कैफी आजमी ने 11 साल की आयु में एक मुशायरे में अपनी पहली गजल इतना तो जिंदगी में किसी के खलल पड़े, हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े पढ़ी. उनकी यह गजल खूब सराही गई.
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लखनऊ में ली शिक्षा
कैफी को अरबी शिक्षा के लिए लखनऊ के सुल्तानुल मदारिस भेजा गया, लेकिन वह जगह उन्हें रास नहीं आई. वर्ष 1932 से 1942 तक लखनऊ में रहने के बाद कैफी कानपुर चले आए और कम्यूनिस्ट पार्टी आफ इंडिया की सदस्यता ग्रहण कर ली. 1947 में जब मुम्बई में कम्यूनिस्ट पार्टी का दफ्तर खुला तो वह मुंबई चले गए और वहीं रहकर काम करने लगे. उस वक्त तक वह शायरी की दुनिया में काफी मकबूल हो चुके थे. उनकी शादी शौकत से हुई जिनसे उनके दो बच्चे हुए. उनकी एक बेटी शबाना आजमी हैं जो आज हिन्दी सिनेमा जगत की एक मशहूर फिल्म अभिनेत्री हैं और बेटा बाबा आजमी प्रसिद्ध कैमरामैन है.
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Kaifi Azmi Songs: फिल्मी गीतों में कैफी का सफर
फिल्मी गीतकार के रूप में भी कैफी का सफर बेहद शानदार रहा. उन्होंने वर्ष 1952 में शाहिद लतीफ की फिल्म बुजदिल के लिए पहला गीत लिखा. इसके अलावा नानू भाई वकील की फिल्मों यहूदी की बेटी (1956) परवीन (1957) मिस पंजाब मेल (1957) और ईद का चांद (1958) में भी उनके लिखे गीत खासे मकबूल हुए. कैफी ने मशहूर फिल्मकार गुरूदत की फिल्म कागज के फूल (1959) चेतन आनंद की हकीकत (1964) के अलावा कोहरा (1964) अनुपमा (1966) उसकी कहानी (1966) सात हिंदुस्तानी (1969) और रजिया सुल्तान (1983) में भी गीत लिखे.
कैफी का पहला कविता संग्रह झनकार वर्ष 1943 में प्रकाशित हुआ. अपने अमर शाहकार आवारा सजदे के लिए उन्हें वर्ष 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. वहीं साल 2002 में उन्हें इसी रचना के लिए साहित्य अकादमी फेलोशिप दी गई. हिंदी फिल्म सात हिंदुस्तानी के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी दिया गया. उन्हें पद्मश्री और राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
कैफी एक शख्सियत नहीं बल्कि आंदोलन थे. वह हमेशा कहा करते थे गुलाम हिंदुस्तान में पैदा हुआ हूं, आजाद हिंदुस्तान में जी रहा हूं और सोशलिस्ट हिंदुस्तान का सपना अपनी नम आंखों में संजोए हुए हूं. 10 मई, 2002 को मुंबई के जसलोक अस्पताल में यह अजीम-ओ-शान शायर यह कहते हुए इस दुनिया से विदा हो गया, बहार आए तो सलाम कह देना, मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने.
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