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पर्वों के देश यानि भारत की हर बात निराली है. भारत की संस्कृति की तरह यहां के पर्व भी बेहद अनोखे और निराले हैं. साल की शुरुआत ही पर्वों के साथ होती है और इनमें से सबसे अहम पर्व है मकर संक्रांति (Makar Sankranti). हिन्दू धर्म के अनुसार इस पर्व का बहुत अधिक महत्व है. धार्मिक और सामाजिक दोनों ही पक्षों से यह पर्व हमारे लिए महत्वपूर्ण माना जाता है तो चलिएं जानते हैं इस पर्व के बारें में.
What is Makar Sankranti: क्या है मकर संक्रांति
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है. संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है. मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है. उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं.
गंगा स्नान का महत्व
सृष्टि को ऊर्जावान करने वाले भाष्कर देव स्थान परिवर्तन करने जा रहे हैं. मकर संक्रांति से सूर्य नारायण 6 माह के लिए उत्तरायण हो जाएंगे. उत्तरायण काल मांगलिक समेत किसी भी कार्य के लिए श्रेष्ठ माना जाता है. मकर संक्रांति स्नान-दान के लिए बेहद खास है और इस दिन गंगाद्वार में गंगा स्नान के लिए आस्था का सैलाब उमड़ता है.
दरअसल, सूर्य नारायण बारह राशियों में एक-एक माह विराजते हैं. जब भाष्कर देव कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहते हैं तो इस काल को दक्षिणायन कहते हैं. इसके बाद सूर्य नारायण मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में क्रमश: एक-एक माह रहते हैं. इसे उत्तरायण कहा जाता है, जिस दिन सूर्य नारायण दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं तो उस तिथि को मकर संक्रांति कहा जाता है. इस दिन सूर्य नारायण धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इस बार यह दिन चौदह जनवरी को आ रहा है. यानी कि चौदह जनवरी से भाष्कर देव 6 माह के लिए उत्तरायण हो जाएंगे.
Makar Sankranti: पर्व एक रूप अनेक
उत्तर भारत में भगवान को खिचड़ी का भोग लगाने, खाने तथा दान देने के कारण इस पर्व का नामकरण खिचड़ी हो गया. मिथिलांचल में तिल से बने पदार्थो का भोग लगाने, सेवन करने तथा दान देने की परंपरा होने से इसे तिल-संक्रांति का नाम मिल गया है.
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Kumbh Mela on Makar Sankranti- मकर संक्रांति का मेला: कुंभ मेला
मकर संक्रांति पर्व पर देश भर में मेले भी लगते हैं और तीर्थ स्थलों पर गंगा स्नान को श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस साल मकर संक्रांति के मौके पर इलाहाबाद में प्रसिद्ध महाकुंभ मेला भी लगा है. प्रयाग इलाहाबाद में गंगा के किनारे पूरे 144 वर्ष के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है. कुंभ का मेला प्रत्येक 12 वर्ष में आता है. इस तरह प्रत्येक 12 कुंभ पूरा होने के उपरांत एक महाकुंभ का आयोजन होता है जो 144 वर्ष के बाद आता है और वो प्रयाग में ही संपन्न होता है.
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Horo of Makar Sankranti 14 January 2013
कुंभ पर्व को फलदायी बनाने के लिए ग्रहों ने भी मैत्री कर ली है. ग्रह मंडल की सत्ता में 14 जनवरी से परिवर्तन होने जा रहा है. नई सत्ता पूरे एक माह यानि 13 फरवरी तक राज करेगी. माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति 360 वर्ष बाद बनने जा रही है. शुक्र और बृहस्पति के गुरुओं ने भी एक दूसरे के घर में डेरा डाल दिया है. ज्योतिष की दृष्टि से इसे काफी शुभकारी माना जाता है.
Importance of Makar Sankranti: मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
उत्तरायण काल के धार्मिक महत्व को लेकर कई प्रकार के प्रसंग हैं. कहते हैं कि महाभारत काल में पितामह भीष्म ने प्राण त्यागने के लिए बाणों की शैया में 6 माह तक उत्तरायण की प्रतीक्षा की. उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं.
मकर-संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती है. इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं. उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है.
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