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दक्षिण भारत का छठ है पोंगल

Special Days
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Pongal in India

मकर संक्रांति को देश में कई नामों से जाना जाता है. जहां उत्तर भारत में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल कहा जाता है. पोंगल तमिल हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार हमारे दक्षिण भारत की संस्कृति को दुनिया के सामने रखता है. पोंगल का महत्व दक्षिण भारतीयों के लिए उसी तरह है जैसा उत्तर भारतीयों के लिए छठ पर्व. आइए जानें इस पर्व से संबंधित कुछ अहम बातें.


आखिर कैसे पड़ा नाम पोंगल

इस त्यौहार का नाम पोंगल इसलिए है क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोगल कहलता है. तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है अच्छी तरह उबालना. दोनों ही रूपों में देखा जाए तो बात निकल कर यह आती है कि अच्छी तरह उबाल कर सूर्य देवता को प्रसाद भोग लगाना सबसे जरूरी है.


पोंगल पर्व मनाने का कारण

पोंगल मकर संक्रांति का ही एक रूप है. जिस तरह लोहड़ी और मकर संक्रांति फसलों से जुड़े हैं यह पर्व भी फसलों से ही संबंधित है. जनवरी महीने तक तमिलनाडु की मुख्य फसल गन्ना व धान पककर तैयार हो जाती है. जब किसान अपने खेतों में लहलहाती फसलों को देखता है तो वह भगवान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाता है. पोंगल के त्यौहार में मुख्य रूप से बैल की पूजा की जाती है क्योंकि बैल के माध्यम से किसान अपनी जमीन जोतता है और साथ ही भगवान को नई फसल का भोग लगाया जाता है.


छठ जैसी पवित्रता

जिस तरह बिहार समेत उत्तर भारत के लोग छठ मनाते हैं, वैसी ही पवित्रता के साथ दक्षिण भारत में पोंगल मनाया जाता है. इसमें दीपावली की रस्म भी पूरी की जाती है.


तीन दिन का पर्व पोंगल

पोंगल सामान्यतः तीन दिन तक मनाया जाता है. पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे दिन पशु धन की.


पोंगल पर्व का आरंभ ‘बोगी पोंगल’ से होता है, तो समापन ‘कानुम पोंगल’ से होता है. सूर्य देव की आराधना पर आधारित इस पर्व के लिए मायके से चावल, गुड़, घी आदि से आता है. मकर संक्रांति के एक दिन पहले बोगी पोंगल को घर की साफ-सफाई कर कचरे को घर के बाहर जलाया जाता है. इसके बाद आंगन में बहुत बड़ी रंगोली बनाई जाती है. 14 जनवरी को मिट्टी के नए बर्तन को मिट्टी के चूल्हे पर चढ़ाया जाता है जिसमें संयुक्त परिवार की महिलाएं अपने-अपने मायके से आए चावल, गुड़ और घी डालती हैं. जब मीठा चावल तैयार हो जाता है, तो छत पर पुरुष सदस्य सूर्य देव की पूजा करते हैं. इसी क्रम में दूध को उबाला जाता है. आमतौर पर उबलते हुए दूध का बर्तन से गिरना अशुभ माना जाता है, लेकिन पोंगल में इसे शुभ माना जाता है. दक्षिण के अलावा किसी भी दिशा में दूध उबलकर गिरता है तो उसे प्रणाम किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा होने से पूरे वर्ष उनके घर सुख-समृद्धि बनी रहेगी. उस दिन पोंगल (खिचड़ी) के अलावा दही बड़ा अवश्य बनता है, जिसे महिलाएं नई हल्दी का लेप लगाकर स्नान करने के बाद ग्रहण करती हैं. तीसरे दिन कानुम पोंगल में लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं. विवाहित महिलाएं लड़कियों को हल्दी का तिलक लगाकर आशीर्वाद देती हैं. इसी दिन चावल को अलग-अलग रंग में रंगकर घर के बाहर रखा जाता है, ताकि चिड़ियां उसे खाएं. तीनों दिन गन्ना जरूर खाया जाता है.


यह त्यौहार भारतीय संस्कृति की पहचान है. माना कि समय के साथ इसमें थोड़ा-बहुत बदलाव आया है, लेकिन नियम-पवित्रता से कोई समझौता नहीं किया जाता है.


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