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भले ही बॉलिवुड में अभिनेता और अभिनेत्री का स्थान बेहद अहम होता है लेकिन हिन्दी फिल्मों का एक और अहम अंग है सह-कलाकार. बिना सह कलाकार के अधिकतर हिन्दी फिल्मे अधूरी लगती हैं. हिन्दी फिल्मों में सह-अभिनेता और सह-अभिनेत्री का स्थान बेहद महत्वपूर्ण होता है. ऐसी ही एक अहम कलाकार रही हैं निरूपा रॉय. निरूपा रॉय को हिन्दी फिल्मों की “मां” भी कहा जाता है. अमिताभ के लिए तो इनका स्थान मां से भी बढ़कर रहा है. अमिताभ बच्चन की अधिकतर हिट फिल्मों में मां का किरदार इन्होंने ही निभाया है.
बॉलिवुड में अपनी बेमिसाल एक्टिंग से कई कीर्तिमान स्थापित कर चुकी निरूपा राय की आज जयंती है.
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बनाना था पति को कलाकार पर बनी पत्नी
निरूपा राय के पति फिल्मों के बेहद शौकीन थे और अभिनेता बनना चाहते थे. कमल राय अपनी पत्नी को लेकर बी एम व्यास से मिलने गए और अभिनेता बनने की पेशकश की, लेकिन बी एम व्यास ने साफ कह दिया कि उनका व्यक्तित्व अभिनेता के लायक नही है. लेकिन यदि वह चाहें तो उनकी पत्नी को फिल्म में अभिनेत्नी के रूप में काम मिल सकता है. फिल्म रनकदेवी में निरूपा रॉय को पहला मौका मिला.
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एक अद्भुत व्यक्तित्व
एक बेहद निम्न परिवार से उभरकर फिल्मी पर्दे पर सफलता के कीर्तिमान स्थापित करने वाली निरूपा रॉय हमेशा से ही सादगी पसंद रहीं. आज के टीवी सीरियलों और फिल्मों में धार्मिक किरदार करने वाली अभिनेत्रियां फिल्मी पर्दे से बाहर बेहद आकर्षक जीवन जीती हैं जिसकी वजह से लोग जब उन्हें रीयल लाइफ के अलावा रील पर देखते हैं तो उनसे जुड़ नहीं पाते. लेकिन निरूपा रॉय का आम जीवन में भी बेहद सादगी से रहना उनके दर्शकों को उनसे फिल्मों के बाद भी जोड़ कर रखता था.
निरुपा रॉय का जीवन
निरूपा रॉय का जन्म 4 जनवरी, 1931 को गुजरात के बलसाड में एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम कोकिला बेन था. निरूपा रॉय ने चौथी तक शिक्षा प्राप्त की. वह एक बेहद निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से थीं. 15 साल की उम्र में ही निरूपा रॉय की शादी कमल राय से हो गई जो एक सरकारी कर्मचारी थे.
गुजराती फिल्म “रनकदेवी” के बाद उन्होंने हिन्दी फिल्म “अमर राज” भी की. 1953 में उनकी हिट फिल्म “दो बीघा जमीन” आई. इस फिल्म ने उन्हें हिन्दी सिनेमा की हिट हिरोइन के रूप में पहचान दी.
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धार्मिक फिल्में करने का नुकसान
1940 और 1950 के दशक में निरूपा रॉय ने कई धार्मिक फिल्में कीं जिसकी वजह से लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे. फिल्मी पर्दे पर देवी मां का किरदार निभाने के कारण असल जिंदगी में भी उन्हें पर्दे के किरदार से जोड़ कर देखते थे. इसके बाद निरूपा रॉय अधिकतर अभिनेताओं की मां के रोल में नजर आने लगीं और यहीं से उनकी एक विशेष छवि बनी. बॉलिवुड की एक अवधारणा है कि यहां अगर आपके ऊपर धार्मिक फिल्में करने का टैग लग गया तो आपके लिए अन्य फिल्में करने के द्वार बंद हो जाते हैं. निरूपा रॉय के साथ भी बहुत हद तक ऐसा ही हुआ. हालांकि “मां” के किरदार में भी निरूपा रॉय ने सभी को चकित कर दिया.
फिल्मी पर्दे की मां
निरूपा राय ने भी मां की भूमिका को निभाकर एक अलग अध्याय रचा. वे अमिताभ बच्चन के साथ अधिक फिल्में करने की वजह से उनकी मां के रूप में आज भी याद की जाती हैं. “दीवार” में उनकी भूमिका वाकई गजब थी. मां बेटे की यह जोड़ी इसके बाद जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया. रोटी, अनजाना, खून पसीना, सुहाग, इंकलाब, मुकद्दर का सिकंदर, मर्द आदि में उनकी भूमिका दमदार थी. बॉलीवुड में फिल्मी मां का किरदार निभाती निरूपा को असल जिंदगी में भी सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने मां का दर्जा दे रखा था. वे हर सुख-दुख में अमिताभ निरूपा रॉय का साथ देते नजर आए. निरुपा रॉय को आज भी हिन्दी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है.
हिन्दी सिनेमा में मां के किरदार को जीवंत करने वाली इस महान अभिनेत्री की 13 अक्टूबर, 2004 को मौत हो गई. उन्हें आज भी बॉलिवुड की सबसे सर्वश्रेष्ठ मां माना जाता है.
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