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भारतीय संविधान में भारत के हर नागरिक को समान दृष्टि से देखा गया है. भारत के संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि देश में आगे चलकर कोई भेदभाव ना रहे और सभी मिलजुल कर रहें. पर इस संविधान में साथ ही उन लोगों को थोड़ी रियायत देने का भी प्रावधान था जो अल्पसंख्यक और पिछड़े थे लेकिन साथ ही इस विशेष रियायत को एक खास समय सीमा के साथ खत्म करने पर भी जोर दिया गया था. परंतु भारतीय राजनेताओं ने अपनी रोटियां सेंकने के इस अहम अस्त्र को कभी मिटने नहीं दिया और आज आलम यह है कि जो वाकई अल्पसंख्यक हैं उन्हें तो कोई सुविधा और रियायत नहीं मिलती लेकिन इस सुविधा के नाम पर कई अन्य लोग फायदा उठाते हैं.
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क्या कहता है भारतीय संविधान
भारत के संविधान की धारा 15 व धारा 16 में मौलिक अधिकारों के वर्ग में साफ लिखा हुआ है कि जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं उनके विकास के लिए विशेष कोशिशें की जाएं. यह कोशिश सरकार करती है. संविधान में कहा गया है कि ऐसे लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा. किंतु इस तरह के प्रावधान किसी भी रूप में धार्मिक आधार पर किसी रियायत की वकालत नहीं करते हैं.
अल्पसंख्यक शब्द का अर्थ होता है कम संख्या में लेकिन आज देश में जब हम मुस्लिम समुदाय को या किसी अन्य समुदाय को धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक करार देते हैं तो यह अनुचित लगता है. भारत में आज कोई भी धर्म अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता. परंतु जानकार यह भी मानते हैं कि आज कुछ धर्मों के अंदर आने वाली जातियां जरूर अल्पसंख्यक की श्रेणी में आती हैं लेकिन उनके लिए चालू की गई सुविधाओं और कार्यक्रमों का लाभ उसी धर्म के प्रभावशाली वर्ग उठा ले जाते हैं तथा जागरुकता की कमी की वजह से जरूरतमंद हमेशा पीछे ही रह जाते हैं.
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मण्डल आयोग की राय
हालांकि इस बात पर सभी जानकार यह मानते हैं कि अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का मुद्दा भारत में आने वाले कई सालों तक प्रासंगिक बना रहेगा. इस पर किसी एक राय पर सर्वसहमति बना पाना बेहद मुश्किल है. यह एक ऐसा सवाल है जिस पर सभी की राय अलग-अलग हो सकती है और इस पर कोई ठोस फैसला करने के लिए समाज को एक बड़े बदलाव या क्रांति से गुजरना पड़ेगा. यह क्रांति कुछ वैसी ही हो सकती है जैसी मण्डल आयोग के लागू होने पर हुई थी.
अगर इन अल्पसंखयकों में से कोई जाति या समुदाय पिछड़ा या असहाय है तो उन्हें आरक्षण देने में कोई बुराई नहीं है लेकिन धर्म के आधार पर किसी को पिछड़ा घोषित करना अपरिपक्वता या स्वार्थ ही दर्शाता है. यह सच है कि भारत की कुछ जातियां या जनजातियां पूरी तरह पिछड़ी और दमित हैं लेकिन धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या के आधार पर आरक्षण जैसा अधिकार देना एक नई और गंभीर बहस छेड़ सकता है.
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अल्पसंख्यक अधिकार दिवस
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 18 दिसम्बर, 1992 को एक घोषणा पारित कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के संरक्षण एवं उनका कल्याण सुनिश्चित करने की व्यवस्था करने की मांग की गई थी. इस घोषणा को यू.एन. डिक्लेरेशन ऑन माइनारटी (UN Declaration on the Rights of Minorities) के नाम से जाना जाता है. इसी को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों से उन्हें परिचित कराने, उनके कल्याण से सम्बन्धित मामलों को चिन्हित करने, उनके शैक्षिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु उन्हें जागरूक करने के लिए अल्पसंख्यक अधिकार दिवस(Minorities Rights Day) का आयोजन 18 दिसंबर को किया जाता है.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) द्वारा प्रतिवर्ष इस दिन अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना संसद द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी. आज देश में इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही अल्पसंख्यकों के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. हालांकि देश में अन्य आयोग जैसे मानवाधिकार आयोग और अन्य संबंधित विभाग भी हैं लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की भूमिका आज भी बेहद अहम मानी जाती है.
उम्मीद है आने वाले समय में भारत में अल्पसंख्यकों की हालत में जमीनी स्तर पर सुधार होगा और भारतीय समाज में एकता बढ़ेगी. साथ ही आरक्षण नाम के इस नासूर का जल्द ही कोई अहम उपचार होगा. हालांकि इसके लिए राजनीति में एक बड़े बदलाव की जरूरत है जिसकी हम सिर्फ आशा ही कर सकते हैं.
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