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Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi: इनके बिना ना जानें कितने टुकड़े होते भारत के?

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आज हम जिस भारत को देख रहे हैं वह टुकड़ों में बंटा हुआ है. एक टुकड़ा पाकिस्तान के रूप में है तो दूसरा बांग्लादेश. कभी भारत की सीमाएं बेहद लंबी हुआ करती थी. यह दौर था अंग्रेजों के आने से पहले का. लेकिन अंग्रेजों ने भारत को टुकड़ों में बांट दिया और जाते-जाते ऐसे हालात पैदा कर गए कि देश के लगभग 500 टुकड़े हो सकते थे लेकिन लौह पुरुष के नाम से मशहूर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ऐसा होने नहीं दिया.

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sardar-valabhbhai-patelलौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार पटेल भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे. अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल को आधुनिक भारत का शिल्पी कहा जाए तो यह गलत ना होगा. इस मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति के कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी.


indiamap before independence 500 रियासतों को मिलाने का कार्य

सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि ‘रियासतों को तीन विषयों – सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा. इसके बाद सरदार पटेल ने एक नामुमकिन से कार्य को सफल कर दिखाया. देश की 600 छोटी-बड़ी रियासतों को उन्होंने भारत संघ का हिस्सा बनवाया.


सरदार पटेल ने सभी रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर अखंड भारत का निर्माण किया, साथ ही देश को दिशा देने का काम भी किया.  कई लोगों का मानना है कि यदि प्रधानमंत्री बने होते तो आज देश को कश्मीर व आतंकवाद की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता. वे कश्मीर की समस्या का समाधान चाहते थे, लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान का सकारात्मक सहयोग नहीं मिल सका. वे एक ऐसे नेता थे जो सम्पूर्ण भारत की एकजुटता के प्रति कृत संकल्पित थे.

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सरदार पटेल का व्यक्तित्व

सरदार पटेल एक सच्चे देशभक्त थे जो वर्ण-भेद और वर्ग-भेद के कट्टर विरोधी थे. उनमें कई ऐसे गुण थे जो उन्हें एक आदर्श शख्सियत बनाते थे जैसे अनुशासनप्रियता , अपूर्व संगठन-शक्ति, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता. गांधीजी के कुशल नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रहा है. आजादी के बाद अपने कठोर इच्छाशक्ति के बल पर ही उन्होंने देश की विभिन्न रियासतों का विलीनीकरण किया.

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Sardar-Vallabhbhai-Patel-Jawaharlal-Nehruसरदार पटेल से जुड़े विवाद

यूं तो सरदार वल्लभभाई पटेल की छवि देश में एक आदर्श नेता की रही है लेकिन कांग्रेस के बेहद करीबी लोग अकसर सरदार पटेल का विरोध करते प्रतीत होते हैं. साथ ही सरदार पटेल “असमझौतावादी’’, “पूंजी समर्थक”, “मुस्लिम विरोधी”, तथा “वामपक्ष विरोधी” कहा जाता है. सरदार पटेल को लोग कट्टर हिंदुवादी मानते हैं लेकिन साथ ही कई लोग उनपर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ जैसी संस्थानों पर प्रतिबंध लगाने का हिमायती मानते हैं.


सब जानते हैं 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गांधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे पर मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता की वजह से गांधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया. 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे. लेकिन गांधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया. कई इतिहासकार यहां तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती परंतु गांधी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया.


आजादी के समय कई मुख्य मुस्लिम नेताओं ने सरदार पटेल का विरोध किया था इन अहम नेताओं में कई राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता जैसे मौलाना आजाद जैसे लोग भी शामिल थे. इसके अलावा सुभाष चन्द्र बोस के समर्थकों का उनपर आरोप था कि किसी दूसरे को गांधी जी के करीब आने नहीं देते थे. जय प्रकाश नारायण और अशोक मेहता जैसे लोगों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को बिड़ला परिवार और साराभाई पटेल परिवार का समर्थक और हिमायती कहकर विरोध किया था.

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राजेन्द्र प्रसाद को बनाया राष्ट्रपति

कई लोग तो यह भी मानते हैं कि अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी चपलता नहीं दिखाई होती तो भारत के प्रथम राष्ट्रप्ति राजेन्द्र प्रसाद नहीं सी. राजगोपालाचारी बनते. कई इतिहासकारों का मानना है कि पंडित नेहरु चाहते थे कि राष्ट्रपति के पद पर सी. राजगोपालाचारी बैठे और राजेन्द्र प्रसाद उनका विरोध ना करते हुए अपनी दावेदारी वापस ले लें लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को समझा-बुझाकर उन्हें चुनाव के लिए राजी करवा. इसका नतीजा सबके सामने भी आया कि डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने.


सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौत

सरदार वल्लभ भाई पटेल 15 दिसंबर, 1950 को हम सबको अलविदा कह गया. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जिस दृढ़ संकल्प से इस देश को एक किया था वह भावना आज के नेताओं के मन से नदारद है. आज कहीं कोई तेलंगाना मांग रहा है तो कोई यूपी के चार टुकड़े करने की बात करता है. आज भारत को फिर एक सरदार पटेल की जरूरत है.

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