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आज संसार में हर इंसान अपने मतलब और जरूरत को पूरा करने के लिए प्रकृति पर निर्भर है. इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है ऊर्जा. ऊर्जा के बिना इंसान बहुत असहाय है. भोजन से इंसान को जो ऊर्जा मिलती है उसके बिना इंसान कुछ दिनों तक भी जिंदा नहीं रह सकता और ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों पर इंसान की बाकि जिंदगी निर्भर रहती है जैसे विद्युत ऊर्जा से इंसान आज प्रगति की राह पर चल रहा है तो वहीं प्राकृतिक तेलों के भंडार से इंसान के पास यातायात के बेहतरीन साधन उपल्बध हैं लेकिन यह ऊर्जा के स्त्रोत कब तक इंसान का साथ देंगे इसके बारें में कुछ कहा नहीं जा सकता.
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गांधी जी की चाहत थी ऊर्जा संरक्षण
धरती, मानव जाति की जरूरतों को पूरा करने के लिएपर्याप्त ऊर्जा प्रदान करता हैन कि हर व्यक्तिके लालच को पूरा के लिए–महात्मा गांधी
गांधी जी के यह कथन इस तथ्य को उजागर करते हैं कि आजादी से पहले भी भारत में ऊर्जा संरक्षण के प्रति महापुरुष चिंतित थे और उन्हें ज्ञान था कि अगर समय रहते हमने ऊर्जा के स्त्रोतों का हनन कम नहीं किया तो हालात बद से बदत्तर हो जाएंगे.
बच्चों से लेते हैं उधार
एक अमेरिकी कहावत है कि “पृथ्वी हमें अपने पूर्वजों से नहीं मिली है, हम अपने बच्चों से इसे उधार लेते हैं” जिसे अगर हम ऊर्जा से जोड़ कर देखें तो इसका मतलब निकलता है जिन ऊर्जा के स्त्रोतों का आज हम इस्तेमाल कर रहे हैं वह दरअसल हमारे पूर्वजों द्वारा हमें दिया गया उपहार नहीं बल्कि आने वाले कल से हमारे द्वारा मांगा गया उधार है. जिस तेजी के साथ हम प्राकृतिक और परांपरिक ऊर्जा के स्त्रोतों का हनन कर रहे हैं उस रफ्तार से आज से 40 साल बाद हो सकता है हमारे पास तेल और पानी के बड़े भंडार खत्म हो जाए. इस स्थिति में हमें ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्त्रोतों यानि सौर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे साधनों पर निर्भर होना पड़ेगा. लेकिन ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्त्रोतों को इस्तेमाल करना थोड़ा मुश्किल है और इस क्षेत्र में कार्य अभी प्रगति पर है. इन स्त्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए कई तरह के रिसर्च चल रहे हैं जिनके परिणाम आने और आम जीवन में इस्तेमाल लाने के लायक बनाने में अभी समय लगेगा.
इसे देखते हुए अगर हमने अभी से ऊर्जा के स्त्रोतों का संरक्षण करना शुरू नहीं किया तो हालात बहुत बुरे हो सकते हैं और यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा कि दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध पानी या तेल के भंडारों पर कब्जा जमाने के लिए हो. आज विश्व का हर देश कागजी स्तर पर तो ऊर्जा संरक्षण की बड़ी-बड़ी बातें करता है लेकिन यही देश अकसर ऊर्जा की बर्बादी में सबसे आगे नजर आते हैं.
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भारत और ऊर्जा
अगर भारत की बात की जाए तो यहां विश्व में पाएं जाने वाली ऊर्जा का बहुत कम प्रतिशत हिस्सा पाया जाता है लेकिन इसकी तुलना में हम इसको कहीं ज्यादा खर्चा करते हैं.
राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2012
भारत में हर साल 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है. भारत ने साल 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 लागू किया था. इस अधिनियाम में ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्त्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारंपरिक स्त्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था.
भारत में गैर पांरपरिक ऊर्जा स्त्रोतों की उपलब्धता
भारत एक ऐसा देश है जहां पूरे साल सौर्य ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत में साल भर में लगभग 300 दिनों तक तेज धूप खिली रहती है. भारत भाग्यशाली है कि सौर ऊर्जा के लिए खिली धूप, जेट्रोफा के लिए उपलब्ध भूमि, परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम का अथाह भंडार तथा पवन ऊर्जा के लिए लंबा समुद्री किनारा उसके पास नैसर्गिक संसाधन के तौर पर उपलब्ध है. जरूरत है तो बस उचित प्रौद्योगिकी का विकास तथा संसाधनों का दोहन करने की.
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