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Indian President Dr. Rajendra Prasad: बिहार के गांधी को नमन

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आज हम जहां भारत में हर  नेता करोड़ों का घोटाला करने से पीछे नहीं हटते वहीं इस देश के इतिहास में एक ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने अपने त्याग और सादगी से एक आदर्श पेश किया है. भारत में सर्वप्रथम एक सादगी प्रिय नेता के नाम पर जो छवि मन में उभरती है वह हैं भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की.

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dr-rajender-parsadRajendra Prasad- देश के गौरव

देश के प्रथम राष्ट्रपति देश रत्‍‌नडा. राजेन्द्र प्रसादवास्तव में देश के गौरव थे. देश के नव निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. पराधीनता के समय अधिवक्ता के रूप में जिस तरह देश की सेवा की वह अतुलनीय है.


डॉ.  राजेन्द्र प्रसाद: एक स्वच्छा छवि के नेता

डा. राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) की जिस छवि को लोग याद करते हैं वह बेहद साफ-सुथरी और एक आदर्श नेता की है. एक ऐसे नेता की जिसने देश के सर्वोच्च पद पर जाने के बाद भी सभी सरकारी सुविधाओं को ना कह सिर्फ अपने जीवन बसर के लायक संसाधनों का प्रयोग किया. एक ऐसे नेता जिन्हें लोग देश के राष्टपिता महात्मा गांधी के बराबर का दर्जा देते हैं.

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प्रतिभा के धनी राजेन्द्र प्रसाद

डा. राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) का नाम आते ही दिमाग में एक साधारण से पुरुष की छवि आती है जिसने कभी आज की उभरती हुई महाशक्ति भारत का सफलता से प्रतिनिधित्व किया था. डा. राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई काम किए जो आज के नेताओं के लिए एक सबक साबित हो सकते हैं. एक आदर्श नेता क्या होता है इसकी अनूठी मिसाल थे डा. राजेन्द्र प्रसाद. कहते हैं जरूरी नहीं कि जो चीज ऊपर से साधारण लग रही हो वह अंदर से भी साधारण हो. डा. राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) के साथ भी ऐसा ही था. वह बाहर से जितने साधारण लगते थे उतने ही वह असाधारण भी थे.

Dr. Rajendra Prasadबिहार का गांधी

पूर्वी चंपारण में उन्होंने 1934-1935 में भूकंप पीड़ितों की सेवा प्राण प्रण से की. उन्होंने गांधी जी का संदेश बिहार की जनता के समक्ष इस तरह से प्रस्तुत किया कि वहां की जनता उन्हें ‘बिहार का गांधी’ ही कहने लगी.

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एक प्रतिभाशाली छात्र

बात राजेन्द्र बाबू के स्कूली जीवन की है. 1902 में कोलकाता बोर्ड एंट्रेस परीक्षा में छपरा के ‘राजेन बाबू’  को सर्वाधिक अंक एक अंग्रेज परीक्षक ने दिए थे. पुस्तिका पर उस परीक्षक ने टिप्पणी लिखी थी, ‘परीक्षार्थी, परीक्षक से अधिक जानता है’. पांच प्रश्न करने थे जबकि राजेन्द्र प्रसाद जी ने सातों प्रश्नों के उत्तर दिए थे. और साथ राजेन्द्र प्रसाद जी ने टिप्पणी लिखी लिखी थी कोई पांच प्रश्न जांच लें.


इसके बाद की सारी परीक्षाओं में राजेन्द्र प्रसाद जी ने सर्वाधिक अंक अर्जित किए और सर्वप्रथम रहे. शिक्षा पूर्ण करने के बाद वह मुजफ्फरपुर में शिक्षक बने. उनकी ख्याति आदर्श शिक्षक के रूप में थी. तदनंतर वह पटना हाईकोर्ट में कम फीस पर मुकद्दमा जीतने वाले वकील के रूप में चर्चित थे.

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डा. राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन

राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था. बिहार की धरती पर यूं तो और भी कई महापुरुषों का जन्म हुआ है पर राजेन्द्र प्रसाद को बिहार का गौरव माना जाता था. एक किसान परिवार से होने के कारण उन्होंने जीवन की हर कड़वी सच्चाई को नजदीक से देखा था. उनके पिता श्री महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं जिनके संस्कारों में पलकर राजेन्द्र प्रसाद का बचपन बीता. इन्हीं संस्कारों का नतीजा था जो राजेन्द्र प्रसाद जी में सादगी और सहजता के गुणों का सृजन हुआ. सादगी, सरलता, सत्यता एवं कर्त्तव्यपरायणता आदि उनके जन्मजात गुण थे.


राष्ट्रपति पद

गांधीजी ने एक बार कहा था—‘‘मैं जिस भारतीय प्रजातंत्र की कल्पना करता हूं, उसका अध्यक्ष कोई किसान ही होगा.’’


और स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत के सर्वोच्च पद के लिए जनता के प्रतिनिधियों ने एकमत होकर राष्ट्रपति पद के लिए जब राजेन्द्र प्रसाद  को चुना तो उनका यह कथन भी साकार हो गया.


राष्ट्रपति बनने पर उन्होने ‘राष्ट्रपति भवन’ से रेशमी पर्दे आदि हटवा कर खादी का सामान -चादर,पर्दे आदि लगवाए थे जो उनकी सादगी-प्रियता का प्रतीक है. वह विधेयकों पर आंख बंद करके हस्ताक्षर नहीं करते थे बल्कि अपने कानूनी ज्ञान का उपयोग करते हुये खामियों को इंगित करके विधेयक को वांछित संशोधनों हेतु वापस कर देते थे और सुधार हो जाने के बाद ही उसे पास करते थे.


देश के स्वतंत्र होने पर उन्हें प्रथम राष्ट्रपति पद सर्वसम्मति से चुना गया और दूसरी बार भी क्वह इस पद के लिए चुने गए. राष्ट्रपति पद पर वह अत्यंत सादगी से रहते थे. उन्होंने अपने व्यय सीमित रखे थे. शेष धन प्रजा का धन, कल्याणकारी कार्यों में लगाने का उनका उपक्रम था. राष्ट्रपति पद से उन्होंने विश्राम लिया तो पटना स्थित सदाकत आश्रम में शेष दिन साधारण व्यक्ति की तरह बिताए. सन 1962 में उनका सम्मान ‘भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि से देश ने किया. उनका निधन 28 फरवरी 1963 को सदाकत आश्रम पटना में हुआ.

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[Image Courtesy : Google Images]

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