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Bhopal Gas Tragedy 1984: क्या भोपाल कांड के दोषियों के मददगार थे राजीव गांधी ?

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भारत की अर्थव्यवस्था एक खुली अर्थव्यवस्था है जहां विश्व के किसी भी कोने से आने वाले कारोबारी का स्वागत किया जाता है और सिर्फ स्वागत ही नहीं अगर उससे कुछ बुरा हो जाए तो उसे ससम्मान देश से बाहर निकलने की भी सुविधा प्रदान की जाती है. ऐसा हम नहीं भारतीय इतिहास और इतिहासकार मानते हैं. और वह सही भी हैं वरना भारतीय इतिहास के सबसे दर्दनाक गैस कांड भोपाल गैस कांड (Bhopal disaster 1984) के सबसे बड़े दोषी  यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को भारत से सुरक्षित भागने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाधी क्यूं सहायता करते?

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Bhopal gas Tradegy क्या भोपाल कांड के दोषियों के मददगार थे राजीव गांधी ?

भोपाल कांड (Bhopal disaster 1984) देश के इतिहास पर सबसे बड़ा बदनुमा दाग है जिसकी वजह से आज भी भोपाल की हवा में जहर का अनुभव होता है. भोपाल गैस त्रासदी के 27 साल गुजरने के बाद भी जख्म अभी ताजे हैं. जब भी इस घटना की बरसी आती है तो इस दुर्घटना में मरने वाले और प्रभावित होने वाले हजारों मासूमों की याद जेहन में बरबस ताजा हो जाती है और आंखें नम.


लेकिन इस बेहद घिनौने कांड को अंजाम देने वालों के साथ हमारी सरकार ने क्या किया? हमारी सरकार ने यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को उस समय देश से निकलने में पूरी मदद की जिसकी वजह से हजारों जानें गईं. जानकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस की कैद से यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को ‘दिल्ली’ के दबाव से 8 दिसंबर, 1984 को रिहा किया गया. और यह दिल्ली का दबाव किसी और का नहीं उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का माना जाता है.

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Bhopal disaster 1984: क्या है भोपाल गैस कांड

02 दिसंबर, 1984 को घटित भोपाल गैस त्रासदी भारत के इतिहास में वह काला अध्याय है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा. भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर  को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मृत्यु हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. लेकिन हमेशा की तरह यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा था और मरने वालों की संख्या और भी ज्यादा थी.


Bhopal disaster 1984 Effects: भोपाल गैस कांड के पीड़ित

इस घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए शपथ पत्र में मरने वालों की संख्या 5295 है जबकि राज्य सरकार ने एक अन्य याचिका में मरने वाले लोगों की संख्या 15248 बताई है. इस तरह उक्त आंकड़ों को देखें तो विरोधाभास झलक रहा है. यही नहीं इस हादसे में बीमार होने वाले लोगों के आंकड़ों की संख्या में भी संशय के बादल हैं. 2004 तक साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग इस गैस रिसाव के कारण बीमारी की चपेट में आये जिनका इलाज जारी है.


Justice in Bhopal disaster 1984: भोपाल कांड का न्याय

दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी और 15 हजार से ज्यादा जानें छीनने वाली व पांच लाख से ज्यादा लोगों को अपने घातक जद में लेने वाली इस नरसंहारक घटना की मुआवजा राशि मात्र 713 करोड़ रुपये. भारत सरकार की अति रुचि और यूनियन गैस कार्बाइड कारपोरेशन के प्रति अतिरिक्त मोह ने गैस पीड़ितों की संभावनाओं का गला घोंट दिया.

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