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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम अंग वह बहादुर महिलाएं भी रही हैं जिन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम से इतिहास में अपना नाम रोशन किया है. इन्हीं महिलाओं में सबसे अग्रणी मानी जाती हैं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई. झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की वीर गाथा सबने सुनी और पढ़ी है लेकिन इस वीरगाथा को जितनी बार पढ़ो उतनी बार और भी पढ़ने का मन करता है.
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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी….
यूं तो उनकी कहानी कई लेखको ने लिखी लेकिन कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई “झांसी की रानी” शीर्षक़ वाली कविता की बात ही कुछ और है. वीर रस में लिखी गई इस लंबी कविता में उन्होंने लक्ष्मीबाई को खूब लड़ी मर्दानी वहतो झांसी वाली रानी थी कहा है. यह रचना वर्षों बाद भी काफी लोकप्रिय है.
टाइम ने किया सलाम
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अत्याधिक सम्मान मिला है. हाल ही में टाइम मैगजीन ने भी उन्हें अपनी पत्रिका में स्थान देकर सम्मानित किया था. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने पति के बचाव में दीवार बनकर खड़ी होने वाली दुनिया की 10 जांबाज पत्नियों की सूची में शुमार किया है.
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लक्ष्मीबाई का जीवन
इतिहासकार मानते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को हुआ था. वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं. बचपन में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाते थे. जब उनकी उम्र मात्र चार वर्ष थी तभी उनकी माताजी का देहांत हो गया था. इसके बाद उनके पिता मोरेपंत तांबे ने नन्हीं मनु की परवरिश की. उन्होंने बचपन से ही मनु को बेटी नहीं बल्कि बेटे की तरह पाला और उन्हें तलवारबाजी, घुडसवारी एवं तीरंदाजी का विधिवत प्रशिक्षण दिलवाया था.
रानी लक्ष्मीबाई की शादी
कम उम्र में ही उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हो गई. उनकी शादी के बाद झांसी की आर्थिक स्थिति में अप्रत्याशित सुधार हुआ. इसके बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने बाद ही उसकी मौत हो गई. इसके बाद राजा का स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा. उन्होंने दामोदर राव को गोद ले लिया. लेकिन राजा ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सके और जल्दी ही उनकी मृत्यु हो गई.
युवा रानी पर एक के बाद एक मुसीबतें आ रही थीं. पहले पुत्र फिर पति की मृत्यु. मुसीबतें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. अंग्रेजों ने दत्तक पुत्र को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. डलहौजी की राज्य हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने झांसी को अपने राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया.
लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की शर्ते मानने से इनकार कर दिया और अंग्रेजों से युद्ध का फैसला कर लिया. 1857 के संग्राम में झांसी एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा था. लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी है. वह महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की भी पक्षधर थीं. उन्होंने अपनी सेना में महिलाओं की भर्ती की थी.
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बलिदान महारानी का
महारानी लक्ष्मीबाई अपने नन्हे पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांध कर बडे कौशल से युद्ध लडने की कला में माहिर थीं. 1857 के सितंबर-अक्टूबर माह के दौरान उन्होंने बडी बहादुरी से लडते हुए अपने राज्य को, दो पडोसी राज्यों, ओरछा और दतिया की सेनाओं से पराजित होने से बचाया. जनवरी 1858 में जब ब्रिटिश आर्मी ने झांसी पर आक्रमण किया तो पूरे दो सप्ताह तक युद्ध चला. अंतत: ब्रिटिश सेना झांसी शहर को पूरी तरह तहस-नहस करने में सफल रही. हालांकि रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र के साथ वेश बदलकर भागने में सफल रहीं. इसके बाद उन्होंने कालपी में शरण ली जहां उनकी मुलाकात तात्या टोपे से हुई. फिर उन्होंने दोबारा अंग्रेजों के साथ युद्ध लडने की ठानी. इसी संघर्ष में 17 जून 1858 को वह ग्वालियर की रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं और विश्व इतिहास में भारतीय नारी की ओजस्विता की प्रतीक बन गंई.
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