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भारतीय राजनीति के इतिहास में जिन क्षणों को बदनुमा दाग के रूप में देखा जाता है उनमें से इमरजेंसी के पल बेहद अहम हैं. 1975 में जब भारत में इमरजेंसी घोषित की गई थी तो लगभग पूरा भारत इसके विरोध में उठ खड़ा हुआ लेकिन कुछ ऐसे भी शख्स थे जिन्होंने इसका समर्थन किया था और इन्हीं समर्थकों में से एक अहम शख्स थे आचार्य विनोबा भावे.
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आचार्य विनोबा भावे को लोग भूदान आंदोलन का जनक और महान स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं लेकिन कई लोग इनकी इमरजेंसी का समर्थन करने की वजह से आलोचना भी करते हैं. यूं तो विनोबा भावे ने आजादी के बाद राजनीति से दूर रहने का फैसला किया था लेकिन जिस समय भारत में इमरजेंसी लगी उस समय उनके एक बयान ने बहुत हल्ला मचा दिया था. उन्होंने इमरजेंसी को “अनुशासन पर्व” घोषित किया था.
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आखिर क्यूं किया था इमरजेंसी का समर्थन
कई लोग मानते हैं कि विनोबा भावे द्वारा इमरजेंसी का समर्थन करने का फैसला सही था. उन्होंने इस समय को “अनुशासन पर्व” करार दिया था. सभी जानते हैं कि इमरजेंसी के समय देश के हालात कितने भयानक थे. जेपी के नेतृत्व में लाखों युवा वर्ग और असंतुष्ट जनता तो सड़कों पर थी लेकिन इसी भीड़ में कई असामाजिक तत्व भी हावी हो रहे थे जो भीड़ की आड़ लेकर अशांति फैला रहे थे. ऊपर से जेपी का आंदोलन दिनों-दिन अहिंसा से हिंसा की तरफ बढ़ रहा था जिससे आम जनता को हानि पहुंचने की आशंका थी. इस वजह से इंदिरा गांधी का इमरजेंसी लगाना कुछ हद तक सही भी था परंतु पूरी तरह नहीं क्यूंकि इस स्थिति को बिना इमरजेंसी के भी काबू किया जा सकता था. ऐसे में अगर विनोबा भावे ने इमरजेंसी का समर्थन किया तो इसमें कुछ गलत नहीं था.
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विनोबा भावे का जीवन
विन्या, विनोबा, नरहरि भावे, विनायक और बाद में बाबा के नाम से विख्यात आचार्य विनोबा भावे भारतीय संस्कृति के उन्नायक थे. उन्होंने अपनी माता रघुमाई देवी के सुझाव पर गीता का मराठी अनुवाद तैयार किया. मां से ब्रह्मचर्य की महत्ता जब सुनी तो उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए विवाह नहीं किया. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन स्वतंत्रता लाने के प्रयत्नों में लगा दिया. वे गांधी जी के अनुयायी बने रहे.
पवनार से 325 किलोमीटर चलकर विनोबाजी आंध्रप्रदेश के तेलंगाना गए. वहां उन्हें ऐसे किसान मिले जिनके पास जमीन नहीं थी. उनकी दशा अत्यन्त दयनीय थी. पोच्चंपल्लि के भू स्वामी रामचंद्र रेड्डी से विनोबा जी ने भूदान करने का आग्रह किया ताकि बटाई पर किसानी करने वाले आजीविका अर्जित कर सकें. वह तैयार हो गए. विनोबा जी ने लिखा-पढ़ी कराने के बाद 100 एकड़ भूमि वहीं के भूमिहीन किसानों को दे दी. अन्य लोगों ने भी श्री रेड्डी का अनुसरण किया, जिससे भूदान आंदोलन चल पड़ा. विनोबा जी ने किसानों से छठा भाग देने का अनुरोध किया. पैदल यात्रा करते उन्होंने सारे देश में एक क्रांति का प्रवर्तन किया. उन्होंने राजनीति में जाना स्वीकार नहीं किया और ऋषि परंपरा में संपूर्ण पृथ्वी को ‘सर्व भूमि गोपाल की’ कहा और पृथ्वी के निवासियों को अपना कुटुंब बताया. उन्होंने भूदान आंदोलन के लिए समर्पित कार्यकर्ता प्रस्तुत किए. इनमें जयप्रकाश नारायण भी थे.
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विनोबा भावे को दिए गए सम्मान
विनोबा भावे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें वर्ष 1958 में अंतरराष्ट्रीय रेमन मैगसेसे सम्मान प्राप्त हुआ था. उन्हें यह सम्मान सामुदायिक नेतृत्व के क्षेत्र में प्राप्त हुआ था. मरणोपरांत वर्ष 1983 में विनोबा भावे को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था.
Death of Vinoba Bhave: विनोबा भावे का निधन
नवंबर 1982 में जब उन्हें लगा कि उनकी मृत्यु नजदीक है तो उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप 15 नवम्बर, 1982 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने मौत का जो रास्ता तय किया था उसे प्रायोपवेश कहते हैं जिसके अंतर्गत इंसान खाना-पीना छोड़ अपना जीवन त्याग देता है.
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