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Legal Services Day: कहीं आपका न्याय आपसे छीना तो नहीं जा रहा है

Special Days
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इस भागती-दौड़ती जिंदगी में दो पल के लिए रुकिए और सोचिए कि कहीं कोई आपके अधिकारों से आपको दूर तो नहीं कर रहा, कोई आपका न्याय तो नहीं छीन रहा है. अगर अभी तक आपने यह सब नहीं सोचा है तो अब सही समय है इस बारे में सोचने का. हर साल की तरह इस साल भी राष्ट्रीय न्यायिक सेवा दिवस 9 नवंबर को मनाया जा रहा है तो क्यूं ना एक पल रुक कर हम अपने अधिकारों और न्याय के बारे में सोचें.


Legal Services Day 2012: राष्ट्रीय न्यायिक सेवा दिवस 2012

सबसे पहले जानते हैं यह “न्यायिक सेवा दिवस” (Legal Services Day) है क्या? हर साल 09 नवंबर को राष्ट्रीय न्यायिक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के बारे में जागरुक किया जाता है और उन्हें सामान्य जीवन में न्याय व्यवस्था से रूबरू कराया जाता है. 09 नवंबर को ही यह दिन मनाए जाने के पीछे वजह है कि 1955 में न्यायिक सेवा संगठन का गठन हुआ था.


Legal Services in India: भारत में न्यायिक सेवाएं

भारतीय संविधान की धारा 39ए के तहत हर राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने सभी नागरिकों को समान न्यायिक सुविधाएं प्रदान कराए. साथ ही संविधान में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि समाज के हर वर्ग को बिना जाति-धर्म और वर्ण देखे न्याय मिले.

रोटी, कपड़ा और मकान आरंभ से भारत की तीन बुनियादी आवश्यकताएं हैं जो मानव के जीने के अधिकार की रक्षा करते हैं, परंतु गरिमामय जीवन के अधिकारों की नहीं. आज के आधुनिक समाज के लिए इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि भी महत्वपूर्ण हैं. इसके अलावा वैश्वीकृत दुनिया के लिए आज भ्रष्टाचारमुक्त समाज का अधिकार भी महत्वपूर्ण हो गया है. भारत में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में संतोषजनक परिणाम अब तक नहीं मिल पाया है जो कि एक चुनौती है. वर्तमान वैश्विक संदर्भ में इसकी अनिवार्यता और भी बढ़ जाती है. हालांकि भारतीय संविधान सामाजिक न्याय के क्रियान्वयन के लिए तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को स्पष्ट निर्देश देता है परंतु कुछ नीतिगत और व्यावहारिक कारणों से इस क्षेत्र में हमारा प्रदर्शन बेहद लचर रहा है. इसके पीछे एक तरफ राजनीतिक दबाव तो दूसरी ओर संवैधानिक संस्थाओं के उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों की उदासीनता प्रमुख कारण है. न्याय व्यवस्था में देरी के चलते बहुत से लोग न्याय की पहुंच से दूर हैं. एक तरफ न्यायाधीशों की कमी है तो दूसरी ओर मुकदमों का अंबार बढ़ रहा है. यूं तो सरकार ने ग्राम न्यायालय, लोक अदालत, उपभोक्ता अदालत आदि कई उपाय मुकदमों के बोझ को हल्का करने के लिए किए हैं फिर भी कई कारणों से अदालतों में आज भी लाखों की संख्या में मुकदमे लंबित हैं. इन समस्याओं से सामाजिक असंतोष बढ़ना स्वाभाविक है.

आज भी देश के कई दूर-दराज इलाकों में कोई पुलिस वाला किसी लड़के को चोरी के आरोप में कई-कई दिन जेल में रखता है और भी बिना कोर्ट में पेश किए हुए, आज भी हम न्यूज चैनलों में देखते हैं कि लोग ठगी का शिकार होकर अपनी कमाई गंवा रहे हैं. यह सब सिर्फ इसलिए क्यूंकि लोगों को अपने अधिकारों और न्याय पाने की प्रणाली के बारे में पता ही नहीं होता.


सरकार को कुछ ऐसे उपाय करने चाहिए जिनसे समाज में सभी वर्गों को समान रूप से न्याय मिल सके. लोगों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरुक बनना चाहिए.



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