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भारतीय राजनीति एक ऐसी कहानी है जिसका हर पहलू आपके अंदर के रोमांच को चरम तक पहुंचा सकता है. भारत को आजादी दिलाने के स्वर्णिम युग से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे महान नेताओं की मौत तक की काली रातें इस राजनीति की कहानी में समाहित हैं. भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi)की मौत की कहानी भी अकसर राजनैतिक गलियारों में एक चर्चा की कहानी रही है.
Death of Indira Gandhi: इंदिरा गांधी की मौत और भारत
31 अक्टूबर, 1984 की शाम इस देश के लिए बेहद निराशा और अशांति का साया साथ लेकर आई. दोपहर को देश की सबसे मजबूत इच्छा शक्ति और दृढ़संकल्प दिखाने वाली लौह महिला इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की की निर्मम तरीके से उनके ही अंगरक्षकों ने हत्या कर दी तो वहीं शाम होते-होते देश की राजधानी के कई सिख परिवारों के दीपक बुझ गए. इंदिरा गांधी की मौत ने जहां देश में नेताओं की कमजोर सुरक्षा को दुनिया के सामने जाहिर किया वहीं इसके बाद हुए सिखदंगों ने साबित कर दिया कि भारत में धर्म, जात-पात से ऊपर है भावना. भावना के आवेश में आकर भारतीय लोग चाहे तो कोई भी दीवार तोड़ सकते हैं. इस जज्बे को सलाम करें या इसकी निंदा करें यह एक अलग सवाल है.
Mystery of Indira Gandhi- इंदिरा गांधी की मौत: राज 31 अक्टूबर 1984 का
माना जाता है कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की मौत की एकमात्र वजह था खालिस्तान और ऑपरेशन ब्लू स्टार. ना ऑपरेशन ब्लू स्टार होता ना इंदिरा जी की हत्या की जाती. लेकिन अपने फैसलों से कभी पीछे ना हटने वाली इंदिरा गांधी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पंजाब में पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार की मंजूरी दी और फिर कई बार कहने पर भी अपने रक्षकों से सिखों को नहीं हटाया. जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया और इसका परिणाम चंद महीनों में ही इंदिरा गांधी को अक्टूबर 1984 में अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी.
Assassination of Indira Gandhi: इंदिरा गांधी की मौत की कहानी
इतिहास इस घटना को भारतीय राजनीति के सबसे काले अध्याय के रूप में याद करता है. इंदिरा गांधी के करीबी और कई लोगों का मानना है कि इंदिरा गांधी मौत से एक दिन पहले उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं. यूं तो अमूमन किसी अन्य शहर से लौटने के अगले दिन इंदिरा जी अपने घर सफदरजंग रोड पर जनता दरबार में जनता के बीच नहीं जाती थीं लेकिन उस दिन कुछ विशेष लोग आने वाले थे इसलिए इंदिरा जी ने 31 अक्टूबर को जनता दरबार में जाने का फैसला किया.
सुबह नौ बजे इंदिरा जी तैयार होकर अपने घर से ऑफिस की तरफ निकल रही थीं तब उनकी सुरक्षा में तैनात एक सैनिक बेअंत सिंह ने अचानक अपनी दाईं तरह से सरकारी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी जी पर पहला वार किया. इसके बाद उसने दो और गोलियां दागी जो इंदिरा गांधी के पेट में लगी. इसके पहले कि किसी को कुछ समझ आता संतरी बूथ पर तैनात एक और शख्स की बंदूक इंदिरा जी की तरफ मुड़ गई. यह शख्स था सतवंत सिंह जिसने अपनी स्टेनगन से इंदिरा गांधी पर अंधाधुंध गोलिया दागनी शुरू कर दी. देखते ही देखते 30 गोलियां इंदिरा गांधी के शरीर में जा चुकी थीं. हालांकि इसके बाद जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाकर्मियों ने बेअंत सिंह को वहीं ढेर कर दिया. पर सतवंत सिंह जिंदा बच गया था.
इसके बाद शुरू हुई इंदिरा गांधी की जिंदगी बचाने की जद्दोजहद. दिल्ली के एम्स में इंदिरा गांधी को जख्मी हालत में करीब साढ़े नौ बजे ले जाया गया. इंदिरा गांधी जी का ब्लड ग्रुप 0-नेगेटिव था और भारत में सौ लोगों में से सिर्फ एक का 0-नेगेटिव ब्लड ग्रुप होता है. ऐसे में इंदिरा जी को बचाने के संघर्ष में डॉक्टरों ने उन्हें कई बोतल खून चढ़ाया लेकिन सब व्यर्थ साबित हुआ. आखिरकार दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर आधिकारिक तौर ये ऐलान कर दिया गया कि इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी है.
जो इंदिरा गांधी अपनी लौह इच्छाशक्ति से कभी नहीं हिलीं, जिन्होंने देश को परमाणु हथियारों से सशक्त करने का सपना दिखाया उनकी एक छोटी-सी भूल ने उनकी जिंदगी ले ली. होनी को शायद यही मंजूर था.
इंदिरा गांधी की मौत से शुरू हुआ खेल राजीव जी की मौत तक चला
जिस समय इंदिरा गांधी की मौत हुई उसी समय राजीव गांधी को यह आभास हो गया था कि शायद आने वाले समय में उनकी भी हत्या कर दी जाए और हुआ भी वही. राजीव गांधी को भी चरमपंथियों ने बम से उड़ा कर मार डाला.
जिस समय इंदिरा गांधी जी की मौत हुई उस समय सभी की राय थी कि राजीव गांधी को ही देश की सत्ता सौंपी जाए लेकिन सोनिया गांधी अड़ी हुई थीं कि राजीव ये बात कतई मंजूर ना करें. आखिरकार राजीव ने सोनिया को कहा कि मैं प्रधानमंत्री बनूं या ना बनूं दोनों ही सूरत में मार दिया जाऊंगा.
Death of Rajiv Ratan Gandhi
इंदिरा गांधी एक रोल मॉडल
इंदिरा गांधी अपने सख्त फैसले के लिए भी चर्चित रहीं. वह चाहे वर्ष 1975 में देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला हो या पाकिस्तान से जंग का. अंतत: जीत इंदिरा गांधी की ही हुई. यह कहना गलत न होगा कि देश की लाखों लड़कियों के लिए वह रोल मॉडल थीं. भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा करने के संदर्भ में इंदिरा गांधी देश के प्रधानमंत्रियों में पहले पायदान पर हैं.
कल की इंदिरा गांधी और आज की सोनिया गांधी
इंदिरा गांधी का सपना था “गरीबी मिटाओ” लेकिन अब कांग्रेस का नारा है “गरीब हटाओ”. दोनों की कार्यशैली और विचार धारा में जमीन आसमान का अंतर है. एक तरफ इंदिरा गांधी की सोच थी जो अमेरिका जैसे ताकतवर देश के आगे भी नहीं झुकती थीं. दूसरी तरफ आज की सरकार सबके सामने झुकती है देश की जनता को छोड़कर. इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व पर लोगों की अलग-अलग राय जरूर होगी पर एक विषय में सबकी राय एक ही है कि उनका हौसला चट्टान की तरह मजबूत था.
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