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United Nations Day 2012: संयुक्त राष्ट्र दिवस विशेषांक

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इंसान की लालसा ने हमेशा उसे कई कठिनाईयों में पहुंचा देती है. इंसान अपनी लालसा और अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के नशे में खुद अपना ही दुश्मन बन बैठा है. भविष्य में इंसानों की आपसी लड़ाई कहीं पूरी इंसानियत पर भारी ना पड़ जाए इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी जो आज विश्व की सबसे शक्तिशाली शक्ति है. चाहे अमेरिका हो या चीन कोई भी इस संघ से ऊपर नहीं है. हालांकि कई लोग संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका के हाथों की कठपुतली कहते हैं लेकिन यह कहना भी गलत ना होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की वजह से ही विश्व के कई कौनों में आज शांति और अमन की बयार बह रही है.

Read: History of United Nations in Hindi


संयुक्त राष्ट्र का इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929 में राष्ट्र संघ का गठन किया गया था. राष्ट्र संघ काफ़ी हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा फायदा है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शांति के लिए तैनात कर सकता है.


संयुक्त राष्ट्र संघ से पूर्व, पहले विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ (लीग ऑफ़ नेशंस) की स्थापना की गई थी. इसका उद्देश्य किसी संभावित दूसरे विश्व युद्द को रोकना था, लेकिन राष्ट्र संघ 1930 के दशक में दुनिया के युद्ध की तरफ़ बढ़ाव को रोकने में विफल रहा और 1946 में इसे भंग कर दिया गया. राष्ट्र संघ के ढांचे और उद्देश्यों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनाया. 1944 में अमरीका, ब्रिटेन, रूस और चीन ने वाशिंगटन में बैठक की और एक विश्व संस्था बनाने की रुपरेखा पर सहमत हो गए. इस रूपरेखा को आधार बना कर 1945 में पचास देशों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई. फिर 24 अक्टूबर, 1945 को घोषणा-पत्र की शर्तों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई.


आज इस संघ के सदस्य देशों की संख्या 193 हो गई है. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करना, मानवाधिकारों की रक्षा व सभी देशों का आर्थिक विकास समान रूप से करना था. इसके साथ विभिन्न देशों के मध्य युद्धों को रोकना, अमन व शांति को बढ़ावा देना, पड़ोसी देशों के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना इसके मुख्य उद्देश्य थे.


अमेरिका के हाथों की कठपुतली

आज पूरे विश्व में गरीबी, भुखमरी, बीमारी एवं निरक्षरता से जूझते देशों की मदद करना संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्वपूर्ण दायित्व है. भले ही संयुक्त राष्ट्र को पश्चिमी देशों की हाथों की कठपुतली माना जाता रहा हो लेकिन मौजूदा दौर में इसकी प्रासंगिकता पहले से ज्यादा प्रतीत होने लगी है. आज अनेक अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पैदा हुई नाजुक स्थितियों को संभालने में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भूमिका निभाई है.


विश्व में अमन व शांति

विश्व में अमन व शांति कायम रखने के लिए युवा पीढ़ी को विस्फोटक विचारधारा को त्याग कर शांति व आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना होगा. अमन व शांति के रास्ते को अपनाकर ही विश्व के सभी देश सही मायनों में समान स्तर पर विकास कर सकते है . पिछले कुछ समय से कई देश आधुनिक हथियारों का निर्माण एवं भंडारण कर रहे है. इससे विश्व में अशांति फैलाने की कोशिश हो रहे है. इसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने शुरू से ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.


संयुक्त राष्ट्र और भारत

भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र का व्यवहार हमेशा सामान्य ही रहा. हालांकि कुछेक मौकों पर भारत को इस संस्था से निराशा हाथ लगी. वर्ष 1948 में जम्मू-कश्मीर समस्या, वर्ष 1971 का पूर्वी पाकिस्तान का संकट और आजकल आतंकवाद के मुद्दे पर जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र ने भारत के साथ व्यवहार किया उससे आम जनता का इस पर से थोड़ा भरोसा कम हुआ है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा है पर उसे अभी तक यह दर्जा हासिल नहीं हुआ है.


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