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गरीब कौन है पहले यह तो तय कर लो

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17 अक्टूबर को विश्व गरीबी उन्मूलनदिवस (International Day for the Eradication of Poverty) के रूप में मनाया जाता है “एक दिन संयुक्त राष्ट्र की तरफ से गरीबी को खत्म करने के लिए समाज को एकजुट करने के लिए.” यूं तो यह दिन विश्व में 1993 से ही मनाया जा रहा है लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि विश्व में आज भी गरीबों की संख्या कम नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही और गरीबी तो और भी ज्यादा बढ़ी है. हम विश्व को क्यूं देखें हमारे अपने घर यानि भारत में भी गरीबी के हालात कुछ खास अच्छे नहीं हैं.


गरीबी हटानी थी लेकिन हटाए गए गरीब

अगर भारत की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां जरूरत गरीबी हटाने की थी लेकिन सरकार ने गरीबों को हटाने का प्रयास किया जो बिलकुल गलत है. चाहे आजादी से पहले की बात हो या आजादी के बाद. हालात हमेशा बदस्तूर बेकार ही रहे. गरीबी एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर तलाशने की कोशिश आजादी के बाद से निरंतर जारी है, लेकिन यह सवाल सुलझने की बजाय अधिक पेचीदा होता नजर आ रहा है.

Read: टमाटर 40 रुपए किलो और इंसान 32 रुपए !!


Poverty in India आखिर कितने हैं गरीब

आजादी के समय हमारे देश की कुल आबादी 32 करोड़ थी और इसमें से 20 करोड़ लोग गरीब थे. आजादी के बाद तमाम आर्थिक विकास और गरीबी निवारण योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या कम नहीं हुई, बल्कि यह बढ़कर आज 40 करोड़ पहुंच गई है. यह संख्या कम न होना चिंता की बात है और इस पर विचार करने का भी सवाल है कि कमी कहां रह गई? आज सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया गया है कि गरीब किसे मानें और किसे नहीं?


यह सोचकर भी हैरानी होती है कि हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां की 40 करोड़ आबादी आज भी जानवरों जैसी बदहाल जिंदगी जीने को विवश है. उसके पास न तो आय के पर्याप्त साधन हैं और न ही सरकार से ऐसी कोई मदद मिल रही है कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके. पिछले दस-बीस सालों से उनके लिए जो प्रयास किए गए उससे जमीनी स्तर पर कितना बदलाव आया, इसका कोई मूल्यांकन तक न किया जाना सरकार की प्रतिबद्धता और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है? अभी तक सभी गरीबों की पहचान का काम पूरा नहीं हो सका है.


povertyEradication of Poverty:गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम

गरीबी उन्मूलन के नाम से संचालित एक दर्जन से अधिक योजनाएं आज भी संचालित की जा रही हैं. चाहे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनुदान पर खाद्यान्न का वितरण किया जा रहा हो या फिर खाद्य बीज, रसोई गैस, केरोसिन, चीनी आदि पर अनुदान दिया जा रहा है. आत्मा योजना के तहत किसानों को कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण दिए जाने तथा गरीबों के बच्चों को मानदेय आदि के बाद भी गरीबों की संख्या में वृद्धि होना चिंताजनक है.


Reason of Poverty in India: आखिर क्या है वजह

अगर सूत्रों की मानें तो गरीबी उन्मूलन (Eradication Of Poverty) के लिए चलाई जा रही योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, इन योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल पाता.


देश में कभी इंदिरा गांधी जी ने “गरीबी हटाओ” का भी नारा उछाला था. सत्ता में तो तब इंदिरा गांधी आ गईं पर गरीबी तब से अब तक बढ़ी ही है. उस समय भी कहा जाता था कि इंदिरा गांधी जी ने गरीबी को नहीं गरीबों को ही हटाने का कार्य किया था. जगह-जगह झुग्गी-झोपड़ियों को हटाया गया और वहां रहने वाले गरीबों को फ्लैट बनाकर देने के दावे किए गए. आज यह गरीब और भी गरीब हो गए.



आखिर क्या है गरीबी की मुख्य वजह

अगर हम उपरोक्त सभी तथ्यों को कुछ समय के लिए शून्य मान लें तो यह एक हकीकत है कि भारत में संसाधनों की कोई कमी नहीं है साथ ही यहां अवसरों की भी कोई कमी नहीं है. अगर प्रतिभा और लगन के साथ आपकी किस्मत का साथ मिले तो आप आगे बढ़ सकते हैं. माना जाता है भारत में एक गरीब मजदूर अपने बच्चे को भी मजदूरी ही कराता है क्यूंकि उसकी मानसिकता उसे इससे अधिक सोचने की इजाजत ही नहीं देती. तो क्या मानसिकता ही भारत में गरीबी का मुख्य कारण है?


चलो यह तो मानसिकता की बात हुई लेकिन उन लाखों बेरोजगार युवाओं को गरीबी की तरफ धकलेने वाले कारण का क्या जिसकी वजह से पढ़ी-लिखी पीढ़ी भी दो वक्त की रोजी-रोटी कमाने के लिए कड़ा संघर्ष करती है? भारतीय शिक्षण संस्थानों में आपको डिग्री तो थमा दी जाती है लेकिन उस डिग्री के अलावा छात्रों को कोई अन्य कौशल नहीं सिखाया जाता जिसकी मदद से बच्चे आगे जाकर भविष्य में अपने पैरों पर खड़ा हो सकें.


इस सब के बाद क्या हमारी भ्रष्ट सरकारें इसके लिए दोषी नहीं हैं जो मनरेगा और अन्य योजनाओं में अरबों का घोटाला करती हैं. आज सरकार द्वारा चलाई जा रही हर योजना में आपको घोटालों की सड़ांध महसूस होगी. सरकार ने अगर वक्त रहते अपने घोटालों पर काबू नहीं किया तो महंगाई बढ़ती रहेगी और महंगाई के बढ़ने से गरीब और भी गरीब होते जाएंगे.


गर गरीब ना होंगे तो राजनीति किसके नाम पर होगी?

भारत में गरीबी बढ़ने का एक अहम कारक जागरुकता का अभाव भी है. एक गरीब अपने अधिकारों के बारे में जानता ही नहीं जिसकी वजह से उसका शोषण होता है. अगर गरीब को पता हो कि उसे कहां से अपना राशन कार्ड, कहां से मनरेगा के लिए काम मिलेगा तो क्या वह गरीब अपनी गरीबी से लड़ नहीं सकता! पर उसकी इस समझ को भारत की राजनीति आगे बढ़ने ही नहीं देती.


भारतीय राजनीति का यह काला रूप ही है जो गरीबों को अशिक्षित और गरीब बनाए रखना चाहती है ताकि उसकी राजनीति चलती रहे वरना जिस दिन गरीब इंसान शिक्षित होकर गरीबी से उठ जाएगा उस दिन इन नेताओं को राजनीति करने का सबसे बड़ा और घातक अस्त्र हाथ से चला जाएगा. और जब गरीबी हटेगी और शिक्षा का स्तर बढ़ेगा तो उम्मीद है कुछ सच्चे और ईमानदार नेता राजनीति में आएं जो अपने क्षेत्र के विकास के लिए सच्चे मन से कार्य करें.


यदि हम दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो हमारे आसपास के देश भी सामाजिक क्षेत्र पर हमसे ज्यादा खर्च करते हैं.


गरीबों का मजाक

हाल ही में योजना आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि शहरों में रहने वाले यदि 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग 26 रुपये प्रतिदिन खर्च करते हैं तो वे गरीबी रेखा के दायरे में शामिल नहीं माने जाएंगे. अब आप इस रिपोर्ट को बकवास नहीं तो क्या कहेंगे? आप सोच कर देखिए जिस देश का योजना आयोग 32 और 26 रुपए खर्च करने वाले को गरीब ना मानें वहां गरीबी कैसे कम होगी?


भारत में आज एक अरब से अधिक आबादी प्रत्यक्ष गरीबी से जूझ रही है और ऐसे में भारत के भविष्य को संवारने का जिम्मा लेने वाला योजना आयोग 32 और 26 रुपए खर्च करने वालों को गरीब नहीं मानता.


अगर इस देश से गरीबी को हटाना है तो सबसे जरूरी है कि बड़े पैमाने पर गरीबों के बीच उनके अधिकारों की जागरुकता फैलाई जाए साथ ही राजनैतिक स्तर पर नैतिकता को मजबूत करना होगा जो उस गरीबी को देख सके जिसकी आग में छोटे बच्चों का भविष्य (जिन्हें देश के भावी भविष्य के रूप में देखा जाता है) तेज धूप में सड़कों पर भीख मांग कर कट रहा है.

Read:गरीबों को मुंह चिढ़ाती सरकार


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