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आजादी से पहले और आजादी से बाद के हालातों में जमीन आसमान का अंतर है. जिन लोगों ने देश की पराधीनता के दिनों को देखा और फिर देश की आजादी के बाद के हालातों को देखा उनके लिए यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है कि कौन सा समय बेहतर था? कुछ ऐसे ही लोगों में से एक रहे भारत रत्न जय प्रकाश नारायण.
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कभी बर्फ की सिल्लियां तो कभी जेल की चारदीवारी
कभी पराधीन भारत में बर्फ की सिल्लियों पर लेटने वाले जयप्रकाश को आजाद भारत में भी जेल की हवा खानी पड़ी. कभी अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के मंसूबे से उन्होंने जेल यात्रा की थी तो आजादी के बाद जयप्रकाश नरायण ने सत्ता परिवर्तन के लिए लाठियां भी खाईं. जयप्रकाश नारायण महज एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक आदर्श शख्सियत हैं जिनके कदमों पर अगर चला जाए तो देश को एक पारदर्शी और बेहतरीन सरकार मिलने की उम्मीद है.
जय प्रकाश नारायण का स्वभाव
अमूमन गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले जयप्रकाश नारायण सत्याग्रह के द्वारा सत्ता से अपनी बातें मनवाने के हिमायती थे. उनका कहना था कि सत्ता पर जनता का हक है ना कि जनता पर सत्ता का. स्वभाव से बेहद शांत दिखने वाले जयप्रकाश नारायण का हृदय बेहद कठोर और उनकी सोच कभी ना हिलने वाली थी.
जयप्रकाश नारायण का जीवन
जेपी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था. पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए, हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी. यही वजह रही कि वह स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए. आजादी की लड़ाई में जेपी ने सक्रिय भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गए.
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आजादी के बाद
आजादी के बाद नेहरू जी जेपी को सरकार में जगह देना चाहते थे लेकिन जेपी ने सत्ता से दूर रहना ही पसंद किया. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह हैकि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था,शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश केबावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता औरजनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे.
आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण आचार्य विनोबा भावे से प्रभावित हुए और उनके ‘सर्वोदय आंदोलन‘ से जुड़े. उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया. साथ ही बीहड़ों के बागियों से आत्मसमर्पण कराने में भी उनकी भूमिका सराहनीय रही.
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जयप्रकाश नारायण का आंदोलन और भारत में इमरजेंसी
जेपी ने पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया. यहीं उन्हें ‘लोकनायक‘ की उपाधि दी गई. इसके कुछ दिनों बाद ही दिल्ली के रामलीला मैदान में उनका ऐतिहासिक भाषण हुआ. उनके इस भाषण के कुछ ही समय बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया. दो साल बाद लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.
जयप्रकाश नारायणका नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष
जय प्रकाश नारायण मूल रूप से लोकतांत्रिक समाजवादी थे और व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानते थे. वे भारत में ऐसी समाज व्यवस्था के पक्षपाती थे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानसिक प्रतिष्ठा और लोककल्याण के आदर्शों से परिपूर्ण हो.
जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और मरणोपरांत उन्हें ‘भारत रत्न‘ से विभूषित किया गया. जेपी ने आठ अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली.
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