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World Post Day: कहीं खो तो नहीं जाएगा डाकिया

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डाकिया डाक लाया, खुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया, डाकिया डाक लाया… अब यह बोल केवल लाइब्रेरी में रखे पुरानी फिल्म के ऑडियो कैसेट से ही सुनने को मिल सकते हैं. आज तकनीक के इस युग में डाकिए का सारा काम जैसे मोबाइल ने अपने हाथ में ले लिया है. लेकिन जिंदगी के उन दिनों को भी कोई नहीं भूल सकता है जब डाकिए को देखते ही मन में तरह-तरह की संवेदनाएं हिलकोरे मारने लगती थीं.

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World Post Day in HindiWorld Post Day: विश्व डाक दिवस

आज लगभग हर हाथ में आपको मोबाइल देखने को मिल ही जाता है. अपनों से दूरी अब मात्र नाम की रह गई है लेकिन आज से 20 साल पहले हालात जरा अलग थे. वह समय था डाक का. आज विश्व डाक दिवस (World Post Day) के मौके पर आइए अंतर्देशीय पत्रों की उस दुनिया में खो जाएं जो कभी हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा हुआ करते थे.


डाकिया डाक लाया….

आज से करीब 10-15 साल पहले डाकिए की सहभागिता लोगों के हर सुख-दुख से जुड़ी थी. समय बदला, व्यवस्था भी लगभग बदल सी गई है. अब गांव की पगडंडियों पर डाकिए का इंतजार नहीं होता है. बल्कि संचार क्रांति ने संवेदनाओं के तार को अंगुलियों पर सिमटा दिया गया है. पत्रों से संवेदना इजहार करने की परंपरा लगभग खत्म (विलुप्त) हो गई है. इसकी जगह अब हाईटेक हो चुकी जमाने में मोबाइल ने ले ली है.  इस हाइटेक संचार व्यवस्था का असर ने डाकिए की महत्ता को कम किया है. लिहाजा डाक विभाग भी प्रभावित होने से नहीं बच सका है. पत्रों के आवागमन की व्यवस्था, पोस्टकार्ड, अंतरदेशीय पत्र व लिफाफा की बिक्री पर नजर डालें तो इनकी बिक्री पर प्रभाव पड़ा है.

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हरे रंगे का वो पत्र, खाकी कपड़े पहने डाकिया और बहुत कुछ

हरे रंग के अंतर्देशीय पत्र कभी भारतीय समाज के लिए संदेशवाहक के समान होते थे. कागज के यह टुकड़े ना जानें कितनी संवेदनाओं को समेटे एक शहर से दूसरे शहर जाते थे और इनको सही स्थान पर पहुंचाने का कार्य करते थे डाकिए. हमारे समाज में कभी डाकिए का स्थान हर परिवार में एक सदस्य की तरह ही होता था. हर खुशी और दुख में डाकिया ही खबरें पहुंचाता था. बरसात हो या ठंड यह शख्स अपनी सेवाएं कभी नहीं रोकते थे. डाक सेवाओं का एक और अभिन्न अंग मनी ऑर्डर है. यूं तो आज पैसे कहीं से भी सीधे बैंक में ट्रांसफर हो जाते हैं लेकिन एक समय था जब गांव के बाबू शहर में पैसा कमाने जाते थे तो डाक विभाग की यही सेवा मनीऑर्डर देश के लाखों माता-पिताओं तक उनके बच्चों के द्वारा भेजा गया पैसा पहुंचाती थी. कभी-कभार पैसा ना पहुंचने या देर से पहुंचने की शिकायत होती थी लेकिन इस गलती को किसी भी मायने में अधिक आंका नहीं जा सकता. और आज हम जब एसएमएस का प्रयोग करते हैं तो शायद इसे शुरू करने के पीछे के मूल कारक “डाक -तार” को भूल जाते हैं.


भारतीय समाज में डाक विभाग का एक अहम रोल रहा है जिसे भुला पाना मुमकिन नहीं है. आज मोबाइल और इंटरनेट के दौर में भी डाक विभाग खुद को तकनीक के अनुसार ढाल तो रहा है पर जो स्वर्णिम युग डाक ने देखा है शायद ही आधुनिक तकनीक और मोबाइल वह युग देख पाएंगे. आज डाक विभाग ई-पोस्ट, स्पीड पोस्ट और अन्य सेवाओं के साथ हाई-टेक हो रहा है.


World Post Day 2012 : विश्व डाक दिवस 2012

डाक सेवाओं की उपयोगिता और इसकी संभावनाओं को देखते हुए ही हर वर्ष 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस (World Post Day) यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की ओर से मनाया जाता है. विश्व डाक दिवस (World Post Day) का उद्देश्य ग्राहकों के बीच डाक विभाग के उत्पाद के बारे में जानकारी देना, उन्हें जागरुक करना और डाकघरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है.


विश्व डाक दिवस का इतिहास: 1874 से शुरू हुई परंपरा

सभी देशों के बीच पत्रों का आवागमन सहज रूप से हो सके, इसे ध्यान में रखते हुए 9 अक्टूबर, 1874 को जनरल पोस्टल यूनियन के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैंड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था. इसी वजह से बाद में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस (World Post Day) के रूप में मनाना शुरू किया गया. यह संधि एक जुलाई, 1875 को अस्तित्व में आई. एक अप्रैल, 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम बदलकर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union) कर दिया गया. एक जुलाई, 1876 को भारत इस संगठन का सदस्य बना. सदस्यता लेने वाला भारत प्रथम एशियाई देश था.


भारत में डाक सेवाओं का इतिहास बहुत पुराना है. भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना 1 अक्तूबर, 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई.


डाकघरों में बुनियादी डाक सेवाओं के अतिरिक्त बैंकिंग, वित्तीय व बीमा सेवाएं भी उपलब्ध हैं. एक तरफ जहां डाक-विभाग सार्वभौमिक सेवा दायित्व के तहत सब्सिडी आधारित विभिन्न डाक सेवाएं देता है वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी, जनजातीय व दूरस्थ अंडमान व निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में भी उसी दर पर डाक सेवाएं उपलब्ध करा रहा है.


आज जहां लगभग हर देश ने डोर-टू-डोर डिलीवरी खत्म कर दी है वहीं अभी भी भारत में डाकिया हर दरवाजे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है और लोगों के सुख-दुख में शरीक होता है. आशा करते हैं एसएमएस और मोबाइल के इस युग में  भी लोग अंतर्देशीय पत्रों और डाक तार को नहीं भूलेंगे.

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