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भारत ने हमेशा अहिंसा और शांति के रास्ते को ही अपनाया है. भारत में बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी ने जीवन में अहिंसा और शांति के रास्ते को सही साबित किया है लेकिन यहां समय-समय पर जनता ने सरकार और प्रशासन की खिलाफत के लिए हिंसा का भी दामन थामा है. आज जिसे हम हिंसा का नाम देते हैं वह आजादी से पहले क्रांति कहलाती थी और इस क्रांति के एक महान क्रांतिकारी थे भगत सिंह.
भगत सिंह ने देशभक्ति की जो परिभाषा लिखी उस पर चलना बेहद मुश्किल है. उनके जीवन की एक अलग ही थ्योरी थी जिस पर वह खुद ही चलते थे. उनका मानना था कि प्रशासन के बंद हो चुके कानों में आवाज पहुंचाने के लिए धमाके की जरूरत होती है. यह धमाका उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 के दिन दिल्ली की असेंबली में “पब्लिक सेफ्टी बिल” और “ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल” के खिलाफ किया था. इस बिल को कानून बनाने के पीछे अंग्रेजी शासकों का उद्देश्य था कि जनता में क्रांति का जो बीज पनप रहा है उसे अंकुरित होने से पहले ही समाप्त कर दिया जाए.
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यह वह समय था जब देश में क्रांति अपने उफान पर था और हर तरफ मानों देशभक्ति की लहर फैली हो. अंग्रेज शासकों ने देश में ऐसा माहौल पैदा कर दिया था जिसकी सभी आलोचना कर रहे थे. कुछ ऐसा ही माहौल आज भी बनता दिख रहा है. जानकार मानते हैं कि जो हालात उस समय अंग्रेजों ने पैदा किए थे वही आज कांग्रेस की सरकार में दिखने को मिल रहे हैं.
राजनीति के सलाहकार और आजादी से पहले के हालातों पर गहरी नजर रखने वाले मानते हैं कि जिस तरह से अंग्रेजों द्वारा जनता के लिए दमनकारी कदम उठाने की वजह से विद्रोह की स्थिति पैदा हुई थी आज ठीक वैसा ही कांग्रेस सरकार महंगाई और घोटालों से कर रही है. इस स्थिति में लोगों का मानना है कि देश को फिर एक भगतसिंह की जरूरत है.
हालांकि यहां कुछ लोग यह भी मानते हैं कि भगतसिंह ने जो कदम अंग्रेजों के खिलाफ उठाए थे आज उनकी कोई जरूरत नहीं है. जरूरत है तो बस अपने मताधिकार को अपनाने और लोकतंत्र में गांधीजी द्वारा बताए गए अहिंसा के रास्ते पर चलने का.
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आज एक सवाल खड़ा हुआ है कि:
क्या इस देश को फिर एक भगतसिंह की जरूरत है?
इस प्रश्न पर आप अपनी राय कमेंट द्वारा या अपना स्वतंत्र ब्लॉग लिखकर भी दे सकते हैं. आपकी राय इस देश की जनता की आवाज की तरह है इसलिए इसका उपयोग करें और बताएं कि आज की परिस्थिति में भगतसिंह की कितनी प्रासंगिकता है?
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