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गर गांधी जी चाहते तो…..

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भगतसिंह जयंती विशेषांक: Bhagat Singh Jayanti in Hindi

आज हम आजाद हैं. भारत को अंग्रेजों से साल 1947 में आजादी मिली थी. लेकिन यह आजादी भी बहुत मुश्किल से मिली थी. इस आजादी का हमने बहुत बड़ा मोल भी चुकाया है. देश के हजारों युवाओं ने आजादी की बेला पर अपनी जान को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया. देश के ऐसे ही युवा शहीद थे भगत सिंह.

Read: Full Life Story of Bhagat Singh in Hindi


शहीद-ए-आजम भगत सिंह

भगत सिंह का नाम आते ही हमारे दिल में एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का चेहरा सामने आता है जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए क्रांति का रास्ता चुना और फांसी को हंसते-हंसते स्वीकार किया. भगत सिंह ने उस समय युवाओं के दिल में क्रांति की जो मसाल जलाई थी उसे अद्वितीय माना जाता है. भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए क्रांति को ही सशक्त रास्ता बताया और खुद भी इसी पर चलते हुए शहीद हुए और शहीद-ए-आजम कहलाए.


Shaheed Bhagat Singhभगतसिंह का जन्म: Date of Birth Bhagat Singh

कई लोग भगतसिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 बताते हैं तो कुछ 28 सितंबर, 1907. उनकी जन्मतिथि पर संशय जरूर है लेकिन उनकी देशभक्ति पर रत्ती भर भी शक नहीं किया जा सकता. अपने अंतिम समय में भी उन्होंने लोगों की दया की चाह नहीं की और फांसी को ही स्वीकार करना सही समझा.


Mahatma GandhiControversy of Bhagat Singh

कई लोग मानते हैं कि अगर गांधी जी चाहते तो भगतसिंह को बचाया जा सकता था. अगर गांधीजी ने भगतसिंह का साथ दिया होता और उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई होती तो मुमकिन है देश अपना एक होनहार युवा क्रांतिकारी नहीं खोता.


‘मैं देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे उनके उदाहरण के रूप में हिंसा का अनुकरण नहीं करें.


उनके इस बयान के बाद यह सवाल देश के लगभग हर राज्य में गूंजा कि आखिर क्यूं गांधीजी ने देश के इस महान क्रांतिकारी को बचाने की दिशा में कार्य नहीं किया और क्यूं गांधीजी ने भगतसिंह की विचारधारा का विरोध किया?

Read: Mahatma Gandhi’s Death


इस सवाल के जवाब में कई लोग मानते हैं कि अगर महात्मा गांधी जी ने भगतसिंह का समर्थन किया होता तो उनकी खुद की विचारधारा पर सवाल खड़े होते और जिस अहिंसा के रास्ते पर वह बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुके थे उस पर वह पीछे नहीं मुड़ सकते थे. इस चीज से साफ है कि गांधीजी और भगतसिंह की विचारधारा ही वह मुख्य वजह रही जिसकी वजह से दोनों के बीच टकराव हुए और गांधीजी ने भगतसिंह से दूरी बनाना ही सही समझा. भगत सिंह हिंसा और क्रांति को ही अपना रास्ता बनाना चाहते थे जबकि महात्मा गांधी अहिंसा के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं अपनाना चाहते थे.


Death of Bhagat Singh

अंतत: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च, 1931 को ही फांसी दे दी गई. यह फांसी यूं तो 24 मार्च, 1931 की सुबह फांसी दी जानी थी लेकिन ब्रितानिया हुकूमत ने नियमों का उल्लंघन कर एक रात पहले ही तीनों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था.

अंग्रेजों ने भगतसिंह को तो खत्म कर दिया पर वह भगत सिंह के विचारों को खत्म नहीं कर पाए जिसने देश की आजादी की नींव रख दी. आज भी देश में भगतसिंह क्रांति की पहचान हैं.

Read: भारत के महान क्रांतिकारियों की दास्तां

Post your comment on: क्या शहीद भगत सिंह जी और गांधी जी की विचारधारा अलग होने की वजह से ही भगतसिंह को फांसी से बचाया नहीं जा सका?


देश के अन्य क्रांतिकारियों के बारें में भी अवश्य पढ़े:

Sukhdev

Rani Laxmibai

Birsa Munda

Chandra Sekhar Azad


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