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Haritalika teej:हरितालिका तीज कहे जाने के पीछे की कथा

Special Days
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महिलाओं और कुंवारी लड़कियों के लिए हरितालिका तीज बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि हरितालिका तीज वाले दिन महिलाएं अपने पति के लिए और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर के लिए हरितालिका तीज के व्रत को रखती हैं.


यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इसे सबसे पहले गिरिराज हिमालय की पुत्री उमा (पार्वती) ने किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान शंकर उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए. व्रत की कथा से भगवती पार्वती की कठोर तपस्या, भोलेनाथ शिव के प्रति उनकी दृढ निष्ठा, उनके असीम धैर्य व संयम तथा पतिव्रता के धर्म का परिचय मिलता है. कथा के श्रवण का उद्देश्य स्त्री के मनोबल को ऊंचा उठाना है.

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HARITALIKA TEEJकैसे हरितालिका तीज का नाम हरितालिका पड़ा ?

कथा का सार-संक्षेप यह है – पूर्वकाल में जब दक्ष कन्या सती पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव की उपेक्षा होने पर भी पहुंच गई, तब उन्हें बडा तिरस्कार सहना पडा था. पिता के यहां पति का अपमान देखकर वह इतनी क्षुब्ध हुईं कि उन्होंने अपने आप को योगाग्नि में भस्म कर दिया. बाद में वे आदिशक्ति ही मैना और हिमाचल की तपस्या से संतुष्ट होकर उनके यहां पुत्री के रूप में प्रकट हुईं. उस कन्या का नाम पड़ा पार्वती.


इस जन्म में भी उनकी पूर्व-स्मृति बनी रही और वे सदा भगवान शंकर के ध्यान में ही मग्न रहतीं. अपनी इच्छा से वर की प्राप्ति के लिए पार्वती जी तपस्या करती गईं. पुत्री को तपस्या करते देख पिता हिमाचल चिन्तित हो उठे. उन्होंने देवर्षि नारद के परामर्श पर अपनी बेटी उमा का विवाह भगवानविष्णु से करने का निश्चय किया. पार्वती जी को जब यह समाचार मिला तो उन्हें बडा आघात लगा. पार्वती जी मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं. पार्वती जी की सखियों के उपचार से होश में आने पर उन्होंने उनसे अपने हृदय की बात कही कि ‘वे शिव जी के अलावा अन्य किसी से विवाह कदापि नहीं करेंगी’.


शिव जी के प्रति पार्वती जी का प्रेम जानकर सखियां बोलीं,-‘तुम्हारे पिता विष्णु जी केसाथ विवाह कराने हेतु तुम्हें लेने के लिए आते ही होंगे’….. आओ जल्दी चलो, हम तुम्हें लेकर किसी घने जंगल में छुप जाएं. इस प्रकार पार्वती जी की सखियों के द्वारा पार्वती जी का हरण किए जाने के कारण तरह ही इस व्रत का नाम हरितालिका पडा. फिर क्या था पार्वती जी तब तक शिव जी का पूजन करती रही जब तक कि शिव जी से पार्वती जी का विवाह नहीं हो गया. इसी प्रकार आज हर कुंवारी लड़की भी पार्वती जी की तरह हरितालिका तीज के व्रत को करती है.


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