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Mahadevi Verma: शब्दों में रंग लेकिन जिंदगी रंगविहीन

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Mahadevi Verma Biography in Hindi

कहते हैं जो दूसरों के महल बनाते हैं वह अकसर उन महलों में रहा नहीं करते. एक चित्रकार की जिंदगी जरूरी नहीं बहुत रंगीन हो. कई बार सुंदर रंगों से खेलने वाले चित्रकार की खुद की जिंदगी बड़ी बेरंग होती है. कुछ ऐसी ही जिंदगी थी महादेवी वर्मा जी की.


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महादेवी वर्मा जी हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं. महादेवी वर्मा जी की रचनाओं में जितने रंग होते हैं उतनी उनकी जिंदगी में देखने को नहीं मिलते. अधिकतर उन्हें लोगों ने सफेद साड़ी में ही देखा.कहने को तो वह विवाहिता थीं लेकिन असल जिंदगी में उन्होंने वैवाहिक जीवन को नहीं माना.


Mahadevi Verma Mahadevi Verma and Her Husband

महादेवी का विवाह अल्पायु में ही कर दिया गया, पर वह विवाह के इस बंधन को स्वीकार न कर सकीं. इसका कारण उनके जीवन की एक घटना है. हुआ यह कि घर के नौकर ने अपनी गर्भवती पत्नी को इतना पीटा कि वह लहूलुहान होकर रोती-दौड़ती उनके घर आ गई. नौकर को डांट पड़ी, पर संवेदनशील महादेवी के सुकुमार मन पर उसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई. उन्होंने कहा-यह भी क्यों नहीं उसे पीटती?

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मां ने सहजभाव से कहा-आदमी मारे तो औरत कैसे हाथ उठा सकती है? महादेवी तपाक से बोल उठीं- और अगर बाबू जी तुमको इसी तरह मारें तो?


मां ने समझाया कि सभी ऐसे नहीं होते. इस पर महादेवी का प्रश्न था कि इसने इसके साथ शादी क्यों की?


मां से उत्तर मिला- पगली शादी तो घर के बड़े-बूढ़े करते हैं, यह बेचारी क्या करे? अब कोई उपाय नहीं. ‘कोई उपाय नहीं इस वाक्य ने उनके बालमन में गहरी जड़ें जमा ली.


नौ वर्ष की महादेवी वर्मा जब ससुराल पहुंचीं और श्वसुर ने उनकी पढ़ाई पर बंदिश लगा दी तो उनके मन ने ससुराल और विवाह को त्याग दिया. विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके श्वसुर का देहांत हो गया और तब उन्होंने पुन: शिक्षा प्राप्त की, पर दोबारा ससुराल नहीं गईं. उन्होंने अपने गद्य-लेखन द्वारा बालिकाओं, विवाहिताओं और बच्चों के प्रति समाज में हो रहे अन्याय के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाकर उन्हे न्याय दिए जाने की मांग की. उन्होंने ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ के संचालन में सक्रिय भूमिका निभाकर अपने विचारों को व्यवहार रूप में भी परिणत किया. उन्होंने साहित्यकारों की सहायता के लिए इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ संस्था की स्थापना की थी.


महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) की जीवनी

हंसना न कभी जिसने सीखा, पीड़ा की गायक यह प्रतिमा।
माताजी हेमरानी देवी, पति श्री नारायण सिंह वर्मा ॥
जन्मीं थीं फर्रुखाबाद बीच कवियत्री महादेवी वर्मा।

महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं. महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे.


कैसे पड़ा महादेवी नाम

होली के रंग भरे वातावरण में महादेवी वर्मा ने जिस परिवार में जन्म लिया था उसमें कई पीढि़यों से किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था. अत: आनंदमग्न बाबा ने उस कन्या को अपनी कुलदेवी दुर्गाजी का प्रसाद मान उसका नाम ‘महादेवी’ रखा.


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महादेवी वर्मा ने अपनी सफल काव्य शैली के द्वारा लाक्षणिक प्रयोग कर सूक्ष्मतर भावों को अर्थवत्ता प्रदान की है. उपमा-रूपक अलंकारों का प्रयोग इन्होंने बड़ी सफलता के साथ किया है. कवियित्री होने के साथ-साथ वे सशक्त गद्य लेखिका भी थीं. उनका गद्य साहित्य अपेक्षाकृत अधिक प्रखर और अनुभूति पूर्ण है.


उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘नीरजा’, ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘यामा’ आदि हैं. 11 सितंबर, 1987 को महादेवी की मृत्यु हो गई. उनके जाने से हिन्दी साहित्य ने आधुनिक युग की मीरा को खो दिया.


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