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रक्तदान है महादान, रक्तदान है पूजा समान
रक्त जिंदगी का आधार है. हवा ना मिले तो इंसान मर जरूर जाता है लेकिन अगर रक्त का प्रवाह और बनने की प्रणाली काम करना बंद कर दे तो इंसान की मौत और भी दर्दनाक होती है. जिंदगी का यह अनमोल रत्न हर किसी के अंदर भगवान ने प्रवाहित किया होता है लेकिन कभी एक्सीडेंट तो कभी किसी बीमारी की चपेट में आकर अक्सर लोग खून की कमी की वजह से दम तोड़ देते हैं. कई बार जिंदगी के दिए सिर्फ इसलिए बुझ जाते हैं क्यूंकि उन्हें कुछेक लीटर खून नहीं मिल पाता. यह खून सस्ता भी है महंगा भी. शरीर के अंदर स्वत: ही बनता है लेकिन अगर किसी कारणवश इसकी कमी हो जाती है तो इसका मोल अनमोल हो जाता है.
रक्त का कोई मोल नहीं होता. एक स्वस्थ इंसान के लिए यह घर की खेती होती है तो जिसे जरूरत होती है वह इसे खरीदने के लिए मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहता है. यूं तो रक्तदान कोई भी स्वस्थ इंसान कर सकता है लेकिन कुछ ग्रंथियों की वजह से लोग इस महादान से कतराते हैं. इन ग्रंथियों में रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त (Blood) की भरपाई होने में काफी समय लग जाता है जैसी बात शामिल है. इतना ही नहीं यह गलतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित खून देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो जाने के कारण बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं. ऐसी मानसिकता के चलते रक्तदान लोगों के लिए हौव्वा बन गया है जिसका नाम सुनकर ही लोग सिहर उठते हैं. ऐसी ही भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने इस आयोजन की नींव रखी, ताकि लोग रक्तदान (Blood Donation) के महत्व को समझ जरूरतमंदों की सहायता करें. थैलीसीमिया (Thalassemia) एक ऐसी बीमारी है जिसके चलते एक निश्चित अवधि के बाद खून बदलवाने की आवश्यकता पड़ती है, यह अवधि मरीज की आयु पर आधारित होती है. जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, यह अवधि कम होने लगती है. इसी बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि थैलीसीमिया से ग्रसित रोगियों को हमारे और आपके द्वारा दान किए गए रक्त की कितनी जरूरत है.
स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने वर्ष 1997 से 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस (World Blood Donation Day) के रूप में मनाने की घोषणा की. इस मुहिम के पीछे मकसद विश्वभर में रक्तदान की अहमियत को समझाना था.
लेकिन आज भी विश्व के लगभग हर जगह रक्त की कमी है. हर अस्पताल में कई लोग रक्त की कमी की वजह से दम तोड़ देते हैं. जागरूकता का ना होना इसकी सबसे बड़ी वजह है. भारत में आज भी एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक (Centralised Blood Bank) की स्थापना नहीं हो पाई है, जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी खून की जरूरत को पूरा किया जा सके. टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स (Websites) के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ. भले ही इससे थोड़ी बहुत सफलता जरूर मिली हो लेकिन संतोषजनक हालात अभी भी नहीं बन पाए हैं.
तो आइए आज विश्व रक्तदान दिवस के मौके पर जितना हो सके समाज में यह जागरूकता फैलाएं कि रक्तदान से कमजोरी नहीं आती बल्कि किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है और एक नहीं तीन-तीन जिंदगी.
कौन कर सकता है रक्तदान
रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि वह व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच और वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो, जिसे एचआईवी(HIV), हैपिटाइटिस “बी” या “सी” (Hepatitis B,C) जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है. एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में कुछ ही दिनों के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है. दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं.
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